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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
श्रेष्ठ राजाओं, सेनापति रत्न यावत् पुरोहित रत्न, तीन सौ आठ रसोइयों, अठारह श्रेणीप्रश्रेणीजनों तथा दूसरे बहुत से मांडलिक राजाओं, ऐश्वर्यशाली पुरुषों, राज्य सम्मानित विशिष्टजनों यावत् सार्थवाह आदि को बुलाकर कहा-देवानुप्रियो! मैंने अपनी शक्ति, शौर्य द्वारा यावत् समस्त भरत क्षेत्र को विजित किया है। देवानुप्रियो! तुम मेरे महान् राज्याभिषेक की तैयारी करो। .
राजा भरत द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर वे सोलह सहस्र देव यावत् सार्थवाह आदि हर्षित और परितुष्ट हुए दोनों हाथों को अंजलिबद्ध कर मस्तक पर घुमाते हुए राजा को प्रणाम किया एवं आदेश को नियमपूर्वक स्वीकार किया। तदनंतर राजा भरत पौषधशाला में आया यावत् तेले की तपस्या में प्रतिजागरित रहता हुआ तल्लीन रहा। तेले की तपस्या पूर्ण हो जाने पर आभियोगिक देवों को बुलाया और कहा-देवानुप्रियो! विनीता राजधानी के उत्तरपूर्व दिशाभाग-ईशान कोण में शीघ्र ही एक बड़े अभिषेक मण्डप की वैक्रियलब्धि द्वारा रचना करो। वैसा कर मुझे ज्ञापित करो। राजा भरत द्वारा यों कहने पर आभियोगिक देव बहुत ही हर्षित एवं परितुष्ट हुए यावत् स्वामी की जैसी आज्ञा-ऐसा कहकर उन्होंने राजा भरत का आदेश सविनय अंगीकार किया। फिर वे विनीता राजधानी के ईशान कोण में गए, वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने आत्मप्रदेशों को बाहर निष्क्रांत किया। उन्हें संख्यात योजन परिमित दण्ड रूप में परिणत किया। उन से यावत् रिष्ट रत्नों के सारहीन स्थूल पुद्गलों को छोड़ा तथा सारभूत सूक्ष्म पुद्गलों को गृहीत.किया।
पुनः वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने आत्म-प्रदेशों को बाहर निकाला यावत् मृदंग के उपरितन • चर्मनद्ध भाग की ज्यों समतल, रमणीय भूमि भाग की विकुर्वणा की। उसके बीचों बीच एक विशाल अभिषेक मण्डप का निर्माण किया। यह अभिषेक मण्डप सैकड़ों स्तभों पर समवस्थित था यावत् उससे सुगंधित धूप आदि पदार्थों के धूम मय छल्ले बन रहे थे। यहाँ प्रेक्षागृह विषयक वर्णन योजनीय है। ___ अभिषेक मंडप के ठीक मध्य भाग में एक विशाल पीठ चत्वर (चबूतरे) की विकुर्वणा की। वह अभिषेक पीठ रज रहित, चिकना मुलायम था। उसकी तीन दिशाओं में तीन-तीन सीढियाँ बनाईं। उन तीन सोपानमार्गों यावत् तोरण का वर्णन पूर्ववत् कहा गया है। इस अभिषेक पीठ का भूमिभाग अत्यंत समतल एवं रमणीय था। उस भूमिभाग के मध्य उन्होंने बहुत बड़े सिंहासन की रचना की। सिंहासन से लेकर पुष्पमालाओं पर्यन्त वर्णन पहले जैसा है। वे देव इस प्रकार अभिषेक मण्डप का निर्माण कर राजा भरत के पास आए और आदेशानुरूप कार्य सम्पन्न होने की सूचना दी।
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