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________________ तृतीय वक्षस्कार - रत्न चतुष्टय द्वारा सुरक्षा १७६ कोण में चुल्लहिमवान् पर्वत की ओर चला। राजा भरत ने उस चक्ररत्न को चुल्लहिमवान पर्वत की ओर जाते हुए देखा तो उसका. अनुगमन किया यावत् चुल्लहिमवान पर्वत से न अधिक दूर न अधिक समीप बारह योजन का सैन्य शिविर लगाया यावत् चुल्लहिमवान गिरिकुमार को उदिष्ट कर तेले की तपस्या अंगीकार की। इससे आगे का वर्णन मागधतीर्थ के वृत्तांत के सदृश है यावत् समुद्र के गर्जन की तरह गंभीर शब्द करता हुआ राजा भरत चुल्लहिमवान पर्वत जहाँ था वहाँ आया। उसने अपने रथ के अग्र भाग से चुल्लहिमवान पर्वत का तीन बार स्पर्श किया, तेजी से चलते हुए अपने अश्वों को रोका-यावत् कमर में युद्धोचित वस्त्र बांधे हुए धनुष पर बाण चढ़ाकर उसको कान तक खीचक र राजा इस प्रकार बोला यावत् मेरे देश में रहने वाले सब सुनें, ऐसा कहकर उसने आकाश में बाण छोड़ा यावत् राजा भरत द्वारा ऊपर आकाश में छोड़ा गया वह बाण त्वरा पूर्वक बहत्तर योजन तक जाकर चुल्लहिमवान गिरिकुमार की सीमा में उचित स्थान पर गिरा। . चुल्लहिमवान् गिरिकुमार देव ने बाण को जब अपनी सीमा में निपतित देखा तो वह तत्काल क्रोध से जल उठा, रुष्ट हो गया यावत् राजा को उपहार देने हेतु समस्त औषधियाँ मालाएं, गोशीर्ष चंदन, कड़े यावत् पद्मद्रह का जल लिया यावत् अत्यंत तेज गति से राजा भरत के पास पहुँचा यावत् में उत्तरी चुल्लहिमवान पर्वत की सीमा में आपके देश का निवासी हूँ यावत् आपका उत्तर दिशा का अंतपाल-विघ्न निवारक हूँ यावत् राजा के उपहार स्वीकार कर, उसे विदा किया। (७६) तए णं से भरहे राया तुरए णिगिण्हइ २ ता रहं परावत्तेइ २ ता जेणेव उसहकूडे तेणेव उवागच्छइ २ ता उसहकूडं पव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ २ त्ता तुरए णिगिण्हइ २ ता रहं ठवेइ २ ता छत्तलं दुवालसंसियं अट्ठकण्णियं अहिगरणिसंठियं सोवणियं कागणिरयणं परामुसइ २ त्ता उसभकूडस्स पव्वयस्स पुरथिमिल्लंसि कडगंसि णामगं आउडेइ ओसप्पिणीइमीसे तइयाए समाइ पच्छिमे भाए। अहमंसि चक्कवट्टी भरहो इय णामधिजेणं॥१॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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