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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
इससे आगे का वर्णन दक्षिणवर्ती सिंधु निष्कुट के वर्णन सदृश कथनीय है यावत् वैसा कर वे सांसारिक सुखों का प्रत्यनुभव-भोगोपभोग करते हुए रहने लगे। -
(७८) तए णं दिव्वे चक्करयणे अण्णया कयाइ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ २ ता अंतलिक्खपडिवण्णे जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसिं चुल्लहिमवंतपव्वयाभिमुहे पयाए यावि होत्था, तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं जाव चुल्लहिमवंतवासहरपव्वयस्स अदूरसामंते दुवालसजोयणायामं जाव चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, तहेव जहा मागहतित्थस्स जाव समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे २ उत्तरदिसाभिमुहे जेणेव चुल्लहिमवंतवासहरपव्वए तेणेव उवागच्छइ २ ता चुल्लहिमवंतवासहरपव्वयं तिक्खुत्तो रहसिरेणं फुसइ फुसित्ता तुरए णिगिण्हइ णिगिण्हित्ता तहेव जाव आययकण्णाययं च काऊण उसुमुदारं इमाणि वयणाणि तत्थ भाणीय से णरवई जाव सव्वे मे ते विसयवासित्तिकट्ठ उद्धं वेहासं उसुं णिसिरइ परिगरणिगरियमझे जाव तए णं से सरे भरहेणं रण्णा उर्ल्ड वेहासं णिसट्टे समाणे खिप्पामेव बावत्तरि जोयणाई गंता चुल्लहिमवंतगिरिकुमारस्स देवस्स मेराए णिवइए। ___तए णं से चुल्लहिमवंतगिरिकुमारे देव मेराए सरं णिवइयं पासइ २ त्ता आसुरुत्ते रुढे जाव पीइदाणं सव्वोसहिं च मालं गोसीसचंदणं च कडगाणि जाव दहोदगं च गेण्हइ २ ता ताए उक्किट्ठाए जाव उत्तरेणं चुल्लहिमवंतगिरिमेराए अहण्णं देवाणुप्पियाणं विसयवासी जाव अहण्णं देवाणुप्पियाणं उत्तरिल्ले अंतवाले जाव पडिविसजेइ।
शब्दार्थ - रहसिरेणं - रथ के अग्रभाग को, फुसइ - स्पर्श किया।
भावार्थ - आपात किरातों को जीत लेने के अनंतर अन्य किसी दिन वह चक्ररत्न आयुधशाला से प्रतिनिष्कांत हुआ। अंतरिक्ष में स्थित होता हुआ यावत् उत्तर पूर्व दिशा में-ईशान
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