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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
नहीं थी। विकसित आँखों पर सुरक्षा हेतु प्रच्छादन पट लगे थे। उनका तालु एवं जीभ परितप्त स्वर्ण की ज्यों लाल रंग के थे। उसकी नासिका पर लक्ष्मी के अभिषेक का निशान था। कमल पत्र पर पड़े जल बिन्दु की तरह वह अश्व अपने शरीर की आभा लिए था। उसका शरीर चंचल था किन्तु मन में स्थिरता थी। उत्तम आचार संपन्न संन्यासी जिस प्रकार अपवित्र पदार्थ से संसर्ग की आशंका से दूर रहता है, उसी प्रकार वह अश्व उबड़-खाबड़ स्थानों से बचता हुआ गति करता था। वह अपने खुरों की टापों से धरती को आहत करता हुआ चलता था। इसके पैर एक साथ इस प्रकार ऊपर उठते थे मानो वे उसके मुंह से निर्गत हो रहे हों। सघन मृणाल तन्तुओं से युक्त जल में भी वह धरती पर चलने की ज्यों निर्बाधगति से चलता था। देखने से यह प्रतीत होता था कि वह उत्तम जाति-मातृ पक्ष, कुल-पितृपक्ष तथा रूप-आकार संस्थान युक्त है। वह अश्व शास्त्रोक्त उत्तम कुल-क्षत्रियाश्व जातिय था। अपने स्वामी के संकेत आदि से ही उसका आशय समझने वाला था। वह अत्यंत सूक्ष्म, सुकोमल, स्निग्ध रोमों के कारण सुंदर आभा युक्त था। वह अपनी द्रुतगति से देव, मन, वायु तथा गरुड की गति को भी मात करने वाला था, चंचल एवं तीव्रगामी था। वह क्षमा में ऋषि तुल्य था। सुशिष्य की तरह साक्षात् विनय की प्रतिमूर्ति था। वह पानी, आग, पत्थर, मिट्टी, कीचड़, कंकड़ युक्त स्थान, बालू से भरे मैदान, नदियों के तट, उबड़-खाबड़ पठार, पर्वत, कंदरा इन सबको अनायास. ही लांघने में, छलांग भरते हुए पार करने में समर्थ था। वह शत्रु द्वारा न गिराए जा सकने योग्य, शत्रु छावनी पर दण्ड की ज्यों आक्रमण करने वाला, परिश्रांत होने पर भी आंसू न गिराने वाला था। उसका तालु कालिमा रहित था। वह उचित समय पर हिनहिनाने वाला था। निद्रा विजयी, गवेषक-उचित स्थान पर मल-मूल-त्याग करने वाला, परिषहों को जीतने वाला, उत्तम मातृपक्ष युक्त था। उसका नाम मोगरे के फूल जैसा था। उसका रंग तोते के पंखों के समान सुंदर था, देह कोमलता लिए थी। इस प्रकार वह मन को प्रिय लगने वाला था।
वैसे उत्तमोत्तम गुणयुक्त कमलामेल नामक अश्वरत्न पर सेनापति भलीभांति सवार हुआ। उसने राजा के हाथ से खड्गरत्न ग्रहण किया, जो नीलकमल के समान श्यामल, घुमाए जाने पर चन्द्रमंडल के सदृश, शत्रुजन विनाशक तथा स्वर्ण एवं रत्ननिर्मित मूठ युक्त थी। उसमें नवमल्लिका के पुष्प के समान सुगंध आती थी। उस पर विविध प्रकार की मणियों का चित्रांकन था। शाण पर चढ़े होने से उसकी धार चमचमाती हुई एवं तीक्ष्ण थी। वह दिव्य खड्गरत्न लोक में अद्भुत था। वह बांस, वृक्ष, भैंसे आदि के सींग, हाथी आदि के दांत, लौह निर्मित भारी लौह दंड,
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