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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
लाता है?
हे भगवन्! वे नदियाँ उन्मग्नजला तथा निमग्नजला किस कारण कहलाती है? .
हे गौतम! उन्मग्नजला महानदी में तृण, पत्ता, काष्ठ, पत्थर का टुकड़ा, अश्व, गज, रथ, पदाति अथवा मनुष्य - जो भी डाल दिए जाएँ-गिरा दिए जाएँ तो वह महानदी उन्हें तीन बार इतस्ततः घुमाकर एकांत, जलरहित स्थान में फेंक देती है। निमग्नजला महानदी में तिनका, पत्ता, काष्ठ, पत्थर का टुकड़ा यावत् मनुष्य गिरा दिए जाएँ तो वह उन्हें तीन बार इतस्ततः घुमाकर जल में डूबो देती है।
हे गौतम! इस कारण इन महानदियों के नाम निमग्नजला तथा उन्मग्नजला पड़े हैं।
तदनंतर राजा भरत चक्ररत्न द्वारा निर्देशित मार्ग का अवलंबन कर अनेक नरेशों से युक्त, अग्रसर होता हुआ, उच्च स्वर में सिंहनाद करता हुआ यावत् सिंधु महानदी के पूर्ववर्ती तट पर विद्यमान उन्मग्नजला महानदी के समीप पहुँचा। उसने अपने वर्द्धकिरत्न को बुलाया और उससे कहा - देवानुप्रिय! उन्मग्नजला तथा निमग्नजला महानदियों पर पुल बनाओ। प्रत्येक पुल सैकड़ों स्तम्भों पर भलीभाँति टिका हो, चलित और कंपित न होने वाला हो, कवच की तरह अभेद्य हो, जिसकी भुजाएँ अवलंबन सहित हों, सर्वरत्नमय हों। पुल का निर्माण कर मेरे आदेशानुरूप कार्य हो जाने की सूचना करो। ____ राजा भरत द्वारा इस प्रकार आदेश दिए जाने पर वह वर्धकिरत्न बहुत ही हर्षित, परितुष्ट
और मन में आनंदित हुआ यावत् उसने विनय. के साथ राजा की आज्ञा शिरोधार्य की और शीघ्र ही उन्मग्नजला और निमग्नजला महानदियों पर उत्तम पुलों की रचना की यावत् जो अनेक स्तंभों पर अवस्थित थे। ऐसा कर वह राजा के पास आया यावत् आदेशानुसार कार्य संपन्नता की सूचना दी। तदनंतर राजा भरत अपनी सैन्य छावनी सहित उन्मग्नजला तथा निमग्नजला नदियों पर निर्मित पुलों द्वारा, जो सैकड़ों खंभों पर स्थित थे यावत् नदियों को पार किया। ____ ज्यों ही राजा ने महानदियों को पार किया, तमिस्रा गुहा के उत्तरी द्वार क्रौंच पक्षी की तरह आवाज करते सरसराहट के साथ स्वयमेव अपने स्थान से सरक गए-उद्घाटित हो गए। आपात किरातों द्वारा भीषण संघर्ष
(७२) तेणं कालेणं तेणं समएणं उत्तरहभरहे वासे बहवे आवाडा णाम चिलाया परिवसंति अड्डा दित्ता वित्ता विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइण्णा
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