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________________ तृतीय वक्षस्कार - उन्मग्नजला निमग्नजला महानदियाँ उत्तरण १५६ **-8-18-19-09-09-08-0-0-0-10-10-19-19-19-19-19-19-19-10-08-04-2-28-08-0-0-0-0-0-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00 से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ? __ गोयमा! जण्णं उम्मग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कटुं वा सक्करं वा आसे वा हत्थी वा रहे वा जोहे वा मणुस्से वा पक्खिप्पइ ताओ णं उम्मग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिय २ एगंते थलंसि एडेइ, जण्णं णिमग्गजलाए महाणईए तणं वा पत्तं वा कटुं वा सक्करं वा जाव मणुस्से वा पक्खिप्पइ तण्णं णिमग्गजला महाणई तिक्खुत्तो आहुणिय २ अंतो जलंसि णिमजावेइ, से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ-उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ। तए णं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे अणेगराय० महया उक्किट्ठिसीहणाय जाव करेमाणे सिंधूए महाणईए पुरथिमिल्लेणं कूलेणं जेणेव उम्मग्गजला महाणई तेणेव उवागच्छइ २ त्ता वडइरयणं सद्दावेइ २ ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसय-सण्णिविटे अयलमकंपे अभेजकवए सालंबणबाहाए सव्वरयणामए सुहसंकमे करेहि करेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि। ___ तए णं से वड्डइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठचित्त-माणंदिए जाव विणएणं० पडिसुणेइ २ त्ता खिप्पामेव उम्मग्गणिमग्गजलासु महाणईसु अणेगखंभसयसण्णिविढे जाव सुहसंकमे करेइ २ त्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं भरहे राया सखंधावारबले उम्मग्गणिमग्गजलाओ महाणईओ तेहिं अणेगखंभसयसण्णिविटेहिं जाव सुहसंकमेहिं उत्तरइ, तए णं तीसे तिमिस्सगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया २ कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई २ ठाणाई पच्चोसक्कित्था। शब्दार्थ - पक्खिप्पड़ - प्रक्षिप्त करने पर, आहुणिय - घुमाकर, एगंते - एक तरफ, थलंसि - थल पर, एडेह - फेंक देती है, सुहसंकमे - पुल, अणेग - अनेक।। ___ भावार्थ - तमिस्रा गुहा के ठीक मध्य में-बीचोंबीच उन्मग्नजला तथा निमग्नजला संज्ञक दो महानदियाँ बतलाई गई हैं वे तमिस्रा गुहा के पूर्वी भित्ति प्रदेश से निकलती हैं तथा पश्चिमी भित्ति प्रदेश होती हुई सिंधु महानदी में मिल जाती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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