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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
उच्च शब्द हुआ। इस प्रकार सेनापति सुषेण द्वारा दण्डरत्न से चोट किए जाने पर कपाट क्रोंच पक्षी की तरह, आवाज कर सरसराहट के साथ अपने स्थान से सरक गए। इस प्रकार सेनापति सुषेण ने तमिस्रा गुहा के दक्षिणी द्वार के कपाट उद्घाटित किए। ऐसा कर वह राजा भरत की सेवा में उपस्थित हुआ यावत् अंजलिबद्ध हाथों को मस्तक पर घुमाते हुए राजा को जय विजय शब्दों से वर्धापित किया। ऐसा कर राजा से निवेदन किया - हे देवानुप्रिय! मैंने तमिस्रा गुफा के दक्षिणी द्वार के कपाट उद्घाटित कर दिए हैं। हे देवानुप्रिय! मैं और मेरे साथी आपको यह प्रिय संवाद निवेदित करते हैं। आपके लिए यह प्रियकर हो।
राजा भरत सेनापति सुषेण से यह संवाद सुनकर हृष्ट, तुष्ट और चित्त में आनंदित हुआ यावत् सुषेण सेनापति को सत्कृत-सम्मानित किया और कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - हे देवानुप्रियो! शीघ्र ही प्रधान हस्ति रत्न को तैयार करो। अश्व, गज, रथ और पदाति परिगठित चतुरंगिणी सेना को उसी प्रकार तैयार करो यावत् वह राजा अजनगिरि के शिखर के समान हाथी पर आरूढ़ हुआ। तमिसागुहा में काकणी रत्न द्वारा मंडल आलेखन
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तए णं से भरहे राया मणिरयणं परामुसइ तोतं चउरंगुलप्पमाणमित्तं च अणग्धं तंसियं छलंसं अणोवमजुइं दिव्वं मणिरयणपइसमं वेरुलियं सव्वभूयकंतं जेण य मुद्धागएणं दुक्खं ण किंचि जाव हवइ आरोग्गे य सव्वकालं तेरिच्छियदेवमाणुसकया य उवसग्गा सव्वे ण करेंति तस्स दुक्खं, संगामेऽवि असत्थवज्झो होइ णरो मणिवरं धरतो ठियजोव्वणकेसअवट्ठियणहो हवइ य सव्वभयविप्पमुक्को, तं मणिरयणं गहाय से णरवई हत्थिरयणस्स दाहिणिल्लाए कुंभीए णिक्खिवइ।
तए णं से भरहाहिवे णरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे जाव अमरवइसण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती मणिरयणकउज्जोए चक्करयणदेसियमग्गे अणेगरायसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट्ठिसीहणायबोलकलकलरवेणं समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिल्ले दुवारे तेणेव उवागच्छइ २ ता तिमिसगुहं दाहिणिल्लेणं दुवारेणं अईइ ससिव्व मेहंधयारणिवहं।
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