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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
सण्णाहेहत्तिकटु जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मजणघरं अणुपविसइ २ ता बहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सण्णद्धबद्धवम्मियकवए उप्पीलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेविज्जबद्धआविद्धविमल-वरचिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे अणेगगणणायगदंडणायग जाव सद्धिं संपरिवुडे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं मंगलजय २ सद्दकयालोए मजणघराओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढे।
भावार्थ - कृतमाल देव को जीत लेने के उपलक्ष में अष्टदिवसीय महोत्सव पूर्ण हो जाने पर राजा भरत ने अपने सुषेण नामक सेनापति को बुलाया और कहा - देवानुप्रिय! सिंधु महानदी .की पश्चिम दिशा में विद्यमान पूर्व दिशा एवं दक्षिण दिशा में सिंधु महानदी द्वारा तथा पश्चिम दिशा में पश्चिम समुद्र से एवं उत्तर में वैताढ्य पर्वत द्वारा मर्यादित भरत क्षेत्र के कोणवर्ती, खण्ड रूप निष्कुट प्रदेशों को उसके समतल, उबड़-खाबड़ अवांतर क्षेत्रों को मेरे अधीन बनाओ। उनको अधिकृत कर उनसे उत्तम, श्रेष्ठ जाति के रत्न प्राप्त करो, यह सब हो जाने की मुझे सूचना दो।
भरत द्वारा यों आदेश दिए जाने पर सुषेण मन में बहुत हर्षित, परितुष्ट और मन में आनंदित हुआ यावत् दोनों हाथों से अंजली बांधे उन्हें मस्तक पर घुमाते हुए कहा - स्वामिन्! जैसी आपकी आज्ञा - इस प्रकार विनय पूर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया एवं राजा भरत के यहाँ से प्रतिनिष्क्रांत हुआ, अपने घर लौटा एवं अपने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा-देवानुप्रियो! शीघ्र ही प्रधान हस्तिरत्न को तैयार करो। अश्व, गज, रथ एवं पदातियों से युक्त यावत् चतुरंगिणी सेना को तैयार करो। ऐसी आज्ञा देकर वह स्नानागार में गया। स्नान किया, नित्य नैमित्तिक पूजोपचार एवं मंगल प्रायश्चित्त आदि संपन्न किए। उसने अपने शरीर पर कवच धारण किए, धनुष पर प्रत्यंचा आरोपित की। गले में हार धारण किया। उत्तम, स्वच्छ वस्त्र कमर में बांधा। शस्त्रास्त्र धारण किए। अनेक गणनायकों, दंडनायकों से घिरा हुआ यावत् कोरंट पुष्पों की माला से निर्मित छत्र धारण किए हुए, देखते ही लोगों द्वारा जय सूचक शब्दों से वर्धापित होता हुआ स्नानघर से बाहर निकला। बाह्य उपस्थानशाला में जहाँ प्रधान हस्ती तैयार खड़ा था, आया और उस पर आरूढ हुआ।
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