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तृतीय वक्षस्कार - सेनापति द्वारा निष्कुट प्रदेश के विजय की तैयारी
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भरत के तैले की तपस्या पूर्ण होने पर कृतमाल देव का आसन चलित हुआ जैसे वैताढ्यगिरिकुमार का हुआ था यावत् अन्तर इतना है - कृतमाल देव ने राजा भरत को प्रीतिदान देने हेतु स्त्रीरत्नपटरानी के लिए रत्ननिर्मित चतुर्दश तिलक-ललाट के आभूषण एवं कड़े सहित मंजूषा यावत् अन्यान्य आभरण लिए तथा उत्कृष्ट गति से राजा के पास आया, उपहार भेंट किए यावत् राजा ने सत्कृत-सम्मानित कर उसे विदा किया यावत् राजा भोजन मंडप में आया। शेष वर्णन पूर्ववत् है। श्रेणी-प्रश्रेणी जनों ने राजाज्ञा से कृतमाल देव को विजित करने के उपलक्ष में मनाए गए महोत्सव की संपन्नता की राजा को सूचना दी। सेनापति द्वारा निष्कुट प्रदेश के विजय की तैयारी
___तए णं से भरहे राया कयमालस्स० अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - गच्छाहि णं भो देवाणुप्पिया! सिंधूए महाणईए पच्चथिमिल्लं णिक्खुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेहि ओअवेत्ता अग्गाइं वराई रयणाई पडिच्छाहि अग्गाई० पडिच्छित्ता ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। . तए णं से सेणावई बलस्स णेया भरहे वासंमि विस्सुयजसे महाबलपरक्कमे महप्पा ओयंसी तेयलक्खणजुत्ते मिलक्खुभासाविसारए चित्तचारुभासी भरहे वासंमि णिक्खुडाणं णिण्णाण य दुग्गमाण य दुप्पवेसाण य वियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेणावई सुसेणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए जाव करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामी! तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ २ त्ता भरहस्स रणो अंतियाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव सए आवासे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयरहपवर जाव चाउरंगिणिं सेण्णं
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