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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
खेडकब्बड तहेव सेसं जाव विजयखंधावारणिवेसं करेइ २ त्ता वढइरयणं सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! मम आवसहं पोसहसालं च करेहि, ममेयमाणत्तियं पच्चप्पिणह ।
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शब्दार्थ - कमेण - क्रमेण क्रम से लउड - लकुट लाठी, कोण तरकस, अप्फोडियभुजाओं को ठोंकते हुए, गुलगुलाइय - चिंघाड़ रहे थे, किणित- क्वणित- वीणा ।
भावार्थ राजा भरत ने जब दिव्य चक्ररत्न को नैऋत्य कोण में, वरदाम तीर्थ की ओर मनोद्यत देखा तो वह अत्यंत हर्षित और परितुष्ट हुआ। उसने कौटुंबिक पुरुषों को आह्वान किया और कहा - देवानुप्रियो ! अश्व, गज, रथ एवं उत्तम योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना को शीघ्र ही सुसज्ज करो । प्रधान हस्तिरत्न को भी तैयार करो। इस प्रकार आदेश देकर राजा स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ, उसी क्रम से श्वेत, विशाल बादल को चीरकर निकलते हुए चंद्रमा के समान यावत् श्वेत, उत्तम डुलाए जाते चँवरों से युक्त था । अपने हाथों में ढालें लिए हुए, कमर कसे हुए, उत्तम कवच धारण किए हुए, सहस्रों योद्धाओं के साथ वह विजयोद्दिष्ट अभियान में उद्यत था। उन्नत, उत्तम मुकुट, छोटी-छोटी पताकाएँ बड़ी-बड़ी ध्वजाएँ, विजय वैजयन्ती, चंवर तथा साथ चलते छत्र इन सबकी इतनी सघनता थी कि अंधेरा छा रहा था । तलवार, क्षेपणी-प्रहार हेतु पत्थर आदि फेंकने का अस्त्र, खड्ग, धनुष, नाराच सर्वथा लौह निर्मित बाण, कनक-बाण विशेष, कल्पनी - कृपाण, शूल, यष्टिका, भिंदीपाल-भाले, धनुष, तरकश, बाण आदि शस्त्रों से, जो काले, नीले, लाल, पीले तथा सफेद रंग के सैकड़ों चिह्नों से युक्त यह विजय अभियान व्याप्त था । भुजाएँ ठोकते हुए, सिंहनाद करते हुए योद्धा राजा भरत के साथ चल रहे थे। अश्व हर्षपूर्वक हिनहिना रहे थे, हस्ति चिंघाड़ रहे थे। हजारों, लाखों रथों के चलने से उत्पन्न ध्वनि, अश्वों को ताड़ने हेतु प्रयुक्त चाबुकों की आवाज, भंभा - सामान्य ढोल, होरंभ-बड़े ढोल, वीणा, खरमुखी-वीणा विशेष, मृदंग, छोटे शंख, परिलि तथा वच्चक-घास
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तृणों से बना हुआ विशेष वाद्य, परिवादिनि-सप्ततंतुमय वीणा, दंस- अलगोजा, वेणु- बांसुरी, विपंचि - वीणा विशेष, महती कच्छपी - कछुए के आकार में निर्मित बड़ी वीणा, रिगिसिगिकासारंगी, करताल, कंसताल - कांस्यताल, परस्पर ताली बजाने से जनित प्रचुर ध्वनि से मानो समस्त जगत् शब्दायमान हो रहा था। इन सबके मध्य राजा भरत अपनी चतुरंगिणी सेना तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के वाहनों सहित, हजार यक्षों से घिरे हुए कुबेर के समान समृद्धि में तथा इन्द्र के समान ऐश्वर्यशाली प्रतीत होता था। ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट आदि पूर्व वर्णित
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