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तृतीय वक्षस्कार - वर्द्धकिरत्न का बहुमुखी वास्तु नैपुण्य
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अन्यान्य स्थानों को विजय करते हुए यावत् उसने अपनी छावनी डाली। ऐसा कर वर्द्धकिरत्न को बुलाया और कहा - हे देवानुप्रिय! मेरे लिए निवास स्थान एवं पौषधशाला की शीघ्र ही रचना करो एवं आज्ञानुरूप कार्य हो जाने की सूचना दो।। वर्द्धकिरत्न का बहुमुखी वास्तु नैपुण्य
(६०) _तए णं से आसमदोणमुहगामपट्टणपुरवर-खंधावारगिहावणविभागकुसले एगासीइपएसु सव्वेसु चेव वत्थूसु णेगगुणजाणए पंडिए विहिण्णू पणयालीसाए देवयाणं वत्थुपरिच्छाए णेमिपासेसु भत्तसालासु कोदृणिसु य आवासघरेसु य विभागकुसले छज्जे वेज्झे य दाणकम्मे पहाणबुद्धी जलयाणं भूमियाण य भायणे जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु य कालणाणे तहेव सद्दे वत्थुप्पएसे पहाणे गन्भिणिकण्णरुक्खवल्लिवेढियगुणदोसवियाणए गुणड्ढे सोलसपासायकरणकुसले चउसट्ठिविकप्पवित्थियमई णंदावत्ते य वद्धमाणे सोत्थियरुयग तह सव्वओभद्दसण्णिवेसे य बहुविसेसे उइंडियदेवकोट्टदारुगिरिखायवाहणविभागकुसले
इय तस्स बहुगुणड्ढे थवई रयणे णरिंदचंदस्स। तवसंजमणिविढे किं करवाणीतुवट्ठाई॥१॥ सो देवकम्मविहिणा खंधावारं णरिंदवयणेणं। आवसहभवणकलियं करेइ सव्वं मुहत्तेणं॥ २॥
करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ २ त्ता जेणेव भरहे राया जाव एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणइ, सेसं तहेव जाव मजणघराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता। ___शब्दार्थ - विहि - विधि, णू - जानकार, कोट्ट - परकोटा, पहाण - प्रधान-कुशाग्र, तह - तथा, उइंडिय - ध्वजाओं, करवाणी - करूँ, तुवट्ठाई - आपके लिए।
भावार्थ - शिल्पनिष्णात कारीगर आश्रम, द्रोणमुख, ग्राम, पट्टन, नगर, शैन्य शिविर, गृह
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