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________________ तृतीय वक्षस्कार - भरत का मागध तीर्थ की दिशा में प्रस्थान १२५ विनयपूर्वक उन्होंने राजा के वचन को अंगीकार किया। ऐसा कर उन्होंने राजा के यहाँ से प्रस्थान किया। राजा की आज्ञानुरूप यथानिर्दिष्ट सभी कार्यों के साथ यावत् आठ दिनों का महोत्सव आयोजित करने की व्यवस्था की, करवाई। वैसा कर राजा भरत के पास आए और उन्हें आज्ञानुसार व्यवस्था किए जाने की सूचना दी। भरत का मागध तीर्थ की दिशा में प्रस्थान (५६) तए णं से दिव्वे चक्करयणे अट्टाहिआए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ २ ता अंतलिक्खपडिवण्णे, जक्खसहस्ससंपरिवुडे, दिव्वतुडिअ सहसण्णिणाएणं आपूरेते चेव अंबरतलं विणीआए रायहाणीए मज्झमझेणं णिग्गच्छइ २ त्ता गंगाए महांणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरस्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था। ..तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए महाणईए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थिमं दिसिं मागहतित्थाभिमुहं पयायं पासइ पासित्ता हतुट्ठ जाव हियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह, हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेण्णं सण्णाहेह, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह, तए णं ते कोडुंबिय जाव पच्चप्पिणंति, तए णं से भरहे राया जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता मज्जणघरं अणुपविसइ २ ता समुत्तजालाकुलाभिरामे तहेव जाव धवलमहामेहणिग्गए इव जाव ससिव्व पियदंसणे णरवई मजणघराओ पडिणिक्खमई २ ता हयगयरह-पवरवाहणभडचडगरपहगर-संकुलाए सेणाए पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ २ ता अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवई णरवई दुरूढे। तए णं से भरहाहिवे णरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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