________________
१२४
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
चंदन का उस पर लेप किया। उत्तम, श्रेष्ठ, सुगंधित द्रव्यों तथा मालाओं से उसकी अर्चना की। पुष्प समर्पित किए। माला, सुगंधित द्रव्य, वर्णक, सुगंधित चूर्ण तथा वस्त्र आभूषण चढाए। फिर चक्ररत्न के सामने उसने स्वच्छ, स्निग्ध, श्वेत, रत्नमय, अत्रुटित चावलों से स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंदावर्त्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, मत्स्य, कलश, दर्पण-इन आठ-आठ मांगलिक चिह्नों का आलेखन किया। आलेखन कर करणीय अर्थोपचार किए। गुलाब, मल्लिका, चंपक, अशोक, पुन्नाग, आम्र-मंजरी, नवमल्लिका, बकुल, तिलक, कनेर, कुंद, कुब्जक, कोरंटक, पत्र, दमनकइन सुरभिमय कुसुमों को राजा ने हाथ में लिया तथा चक्ररत्न के आगे हाथों से चढाए। वे इतने अधिक थे कि उन पंचरंगे पुष्पों का चक्ररत्न के सामने घुटनों तक ऊँचा ढेर लग गया। तत्पश्चात् राजा ने धूपदान हाथ में लिया, जो चंद्रकांत, हीरक, नीलम रत्न निर्मित उज्ज्वल दंड से युक्त, तरह-तरह के चित्रांकनों से संयोजित, स्वर्ण, मणि तथा रत्नयुक्त, काले अगर, उत्तम कुंदरुक्क, लोबान एवं दीपक की वर्तिका के सदृश धुएँ की धारा छोड़ते हुए, वैडूर्यमणि निर्मित कुड़छे को हाथ में लिया, धूप जलाया। फिर सात-आठ कदम पीछे हटा। बाएँ घुटने को ऊँचा किया यावत् चक्ररत्न को प्रणाम किया। प्रणाम कर शस्त्रागार से निकला। बाहरी सभाभवन में सिंहासन के समीप आया। पूर्वाभिमुख होकर विधिवत् आसीन हुआ। अठारह श्रेणी-प्रश्रेणी-विभिन्न जातिउपजाति के लोगों को आहूत कर, इस प्रकार कहा - देवानुप्रियो! चक्ररत्न के उत्पन्न होने के उपलक्ष में तुम सभी महान् विजय का द्योतक आठ दिनों का विशाल उत्सव-समारोह आयोजित करो। इन दिनों राज्य में खरीद-फरोख्त से संबंधित शुल्क, संपत्ति आदि पर दिया जाने वाला राज्य कर नहीं लिया जाएगा। किसी को किसी से कुछ लेना हो तो तकाजा न किया जाय। आदान-प्रदान, माप-तौल का लेन-देन बंद रहे। राज्य के कर्मकर, अधिकारी किसी के घर में प्रवेश न करें। दण्ड-यथापराध राजग्राह्य द्रव्य-जुर्माना, कुदंड-बड़े अपराध के लिए दण्ड रूप में लिया जाने वाला बड़ा जुर्माना, अल्प रूप में लिया जाय, ऋण या गिरवी के संबंध में कोई विवाद न हो, ऋणी का ऋण राज-कोष से चुका दिया जाय, स्वर वाद्य, ताल वाद्य से अनुसृत नृत्य आयोजित किए जाएँ, अनवरत मृदंगों के निनाद से महोत्सव को गूंजा दिया जाय, नगर सज्जा हेतु प्रयुक्त मालाएँ कुम्हलाई हुई न हों। नगरवासी, जनपदवासी प्रमुदित हो आनंदोत्सव मनाएँ (मैं ऐसी घोषणा करता हूँ)। मेरे आदेशानुसार संपादित कर लिए जाने पर मुझे अवगत कराया जाए।
राजा भरत द्वारा इस प्रकार आदिष्ट होकर अठारह श्रेणी-प्रश्रेणी के लोग हर्षित हुए यावत्
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org