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________________ द्वितीय वक्षस्कार - क्रमशः सुखमय स्थितियाँ owne.१०६ बेल, हरियाली, औषधि, कोमल पत्ते तथा अंकुर आदि में तिक्त-तीखा, कडुय-कडुआ, कषायकसैला, अम्ल-खट्टा, मधुर-मीठा - इन पंचविध रसों का उनमें संचार करेगा। - तब भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, हरियाली, औषधि, पत्र, अंकुर आदि उगेंगे। क्रमशः छाल, त्वचा, पत्र, कोंपल, अंकुर, पुष्प, फल के रूप में वे परिपुष्ट होंगे, भलीभांति विकसित होंगे तथा सुखपूर्वक सेवन करने योग्य होंगे। क्रमशः सुखमय स्थितियाँ (४६) तए णं ते मणुया भरहं वासं परूढरुक्खगुच्छगुम्मलयवल्लितणपव्वयगहरियगओसहियं उवचियतयपत्तपवालपल्लवंकुरपुप्फफलसमुइयं सुहोवभोगं जायं २ चावि पासिहिंति पासित्ता बिलेहितो णिद्धाइस्संति णिद्धाइत्ता हट्टतुट्ठा अण्णमण्णं सद्दाविस्संति २ त्ता एवं वइस्संति-जाए णं देवाणुप्पिया! भरहे वासे परूढरुक्खगुच्छंगुम्मलयवल्लितणपव्वयगहरियग जाव सुहोवभोगे, तं जे णं देवाणुप्पिया! अम्हं केइ अजप्पभिइ असुभं कुणिमं आहारं आहारिस्सइ से णं अणेगाहिं छायाहिं वजणिज्जेत्तिक? संठिई ठवेस्संति २ ता भरहे वासे सुहंसुहेणं अभिरममाणा २ विहरिस्संति। शब्दार्थ- अम्हं - हममें से, अज्जप्पभिइ - अद्यप्रभृति-आज से लेकर, कट्ट - करके। - भावार्थ - तब वे बिलों में रहने वाले मनुष्य भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, तृण, गन्ने, हरियाली, औषधि-ये सब उग रहे हैं तथा छाल, पत्र, प्रवाल, पल्लव, अंकुर, पुष्प एवं फल समुदित तथा सुखपूर्वक उपभोग योग्य हो रहे हैं, ऐसा देखेंगे, तब बिलों से बाहर आयेंगे। हर्षयुक्त एवं प्रसन्न होकर परस्पर एक-दूसरे को पुकारेंगे, ऐसा कहेंगे - ___हे देवानुप्रियो! भरतक्षेत्र में वृक्ष, गुच्छ यावत् फल परिपुष्ट, समुदित एवं उपयोग योग्य हो गए हैं। अतः देवानुप्रियो! आज से हम में से जो कोई अपवित्र, मांस आदि कुत्सित आहार करेगा, उसकी छाया तक वर्जनीय होगी। ऐसा कर निश्चय कर वे संस्थिति-सुव्यवस्था स्थापित करेंगे तथा भरतक्षेत्र में सुख एवं उल्लास के साथ रहेंगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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