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________________ १०८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र **-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*-*-*-*-*-*-*-*-*-24-10--2-18--2-10-08-2-8-28-10-28-48--12-12-10- तेसिं बहूणं रुक्खगुच्छगुम्मलयवल्लितण-पव्वयगहरियगओसहिपवालंकुरमाईणं तित्तकडुयकसायअंबिलमहुरे पंचविहे रसविसेसे जणइस्सइ, तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढरुक्खगुच्छगुम्मलय-वल्लितणपव्वयगहरियगओसहिए, उवचियतयपत्तपवालपल्लवंकुरपुप्फफलसमुइए सुहोवभोगे यावि भविस्सइ। शब्दार्थ - पतणतणाइस्सइ - गरजेगा, जुग - युग-रथ का अवयव विशेष-घोड़ों पर रथ को टिकाने वाला अवयव विशेष, कवेल्लुग - कड़ाहा, पव्वग - गन्ना। .. ___ भावार्थ - उस उत्सर्पिणी काल के दुःषमा नामक दूसरे आरक के प्रथम समय में पुष्करसंवर्तक संज्ञक महामेघ प्रादुर्भूत होगा। वह लंबाई-चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र के प्रमाण जितना होगा। वह शीघ्र ही गर्जन करेगा। उसमें से बिजलियाँ चमकने लगेंगी। बिजलियों से युक्त वह मेघ युग, मूसल तथा मुट्ठी जैसी मोटी-मोटी धाराओं से सात-दिन रात पर्यन्त सर्वत्र एक जैसी वृष्टि करेगा। यह भरतक्षेत्र में अंगारमय, मुर्मुरमय, क्षारमय एवं तपे हुए कड़ाहे के समान सब ओर परितप्त एवं धधकते हुए भूमिभाग को शीतल करेगा। इस प्रकार सात-दिन रात पर्यंत पुष्करसंवर्तक महामेघ के बरस जाने के अनंतर क्षीरमेघ नामक महामेघ प्रादुर्भूत होगा। वह लंबाई-चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। वह विशाल क्षीरमेघ शीघ्र ही गर्जन करेगा यावत् विद्युत युक्त होगा एवं शीघ्र ही युग, मूसल एवं मुष्टि की ज्यों मोटी जलधाराओं के साथ बरसेगा, भरतक्षेत्र की भूमि में शुभ वर्ण, गंध, रस तथा स्पर्श पैदा करेगा। उस क्षीरमेघ के सात-दिन रात पर्यन्त बरस जाने पर घृतमेघ संज्ञक विशाल बादल प्रकट होगा। उसकी लंबाई-चौड़ाई और विस्तार भरतक्षेत्र जितना होगा। वह घृतमेघ संज्ञक बड़ा बादल शीघ्र ही गरजेगा, यावत् बरसेगा। इस प्रकार वह भरतक्षेत्र की भूमि में स्निग्धता उत्पन्न करेगा। उस घृतमेघ के सात दिन-रात पर्यन्त बरस जाने पर अमृत मेघ प्रादुर्भूत होगा। वह लंबाईचौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा यावत् वर्षा करेगा। इस प्रकार भरतक्षेत्र में वह वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, बेल, घास, गन्ने, हरित (दूब), औषधि, कोमल पत्ते, अंकुर आदि वनस्पति काय जीवों को उत्पन्न करेगा। उस अमृतमेघ द्वारा सात दिन रात पर्यन्त वर्षा किए जाने के अनंतर रसमेघ नामक महामेघ उत्पन्न होगा। वह लंबाई-चौड़ाई और विस्तार में भरत क्षेत्र जितना होगा यावत् रस की वर्षा करेगा। इस प्रकार वह बहुत से वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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