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द्वितीय वक्षस्कार अवसर्पिणी का दुःषम - दुःषमा आरक
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तब कठोर, धूलिमलिन, दुस्सह, भयंकर संवर्त्तक चक्रवत् तीव्र गति से वर्तित होने वाली वायु चलेगी। उस काल में दिशाएं प्रतिक्षण धूमिल रहेंगी। वे रजकणों से सर्वथा भरी होंगी। कुछ भी दिखाई नहीं देगा । ये अंधकार के कारण प्रकाश शून्य हो जायेंगी । काल की रूक्षता के कारण चन्द्रमा अहितकर, अपथ्यकर, शीत हिम छोड़ेंगे। सूरज अत्यंत असह्य रूप में तपेंगे।
हे गौतम! तत्पश्चात् अमनोज्ञ, रसवर्जित, जलयुक्त मेघ, विपरीत रस युक्त मेघ, क्षारमेघक्षार के समान जल वाले मेघ, खात्रमेघ करीष के समान अम्ल या खट्टे जलयुक्त मेघ, अग्निमेघ आग बरसाने वाले मेघ, विषमेघ - जहरीले पानी के मेघ, दूषित जल युक्त मेघ, व्याधि - कोढ, रोग, शूल आदि सद्यः घाति बीमारी से प्राण लेने वाले वेदनोत्पादक जलयुक्त मेघ, अप्रिय जलयुक्त - प्रचुर बौछार छोड़ने वाले मेघ निरंतर वर्षा करेंगे।
भरत क्षेत्र ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्वट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रमगत जनपद, मनुष्य वृंद, गाय आदि चौपाए प्राणी, खेचर - गगनधारी विद्याधर, पक्षी समूह, गाँवों एवं अरण्यों में विद्यमान द्वीन्द्रिय आदि जीव, बहुत प्रकार के वृक्ष, वृक्षों के समूह, लताओं के झुरमुट, बेलों . के अंकुर, घास आदि वनस्पतियों और जड़ी-बूटियों का वे विनाश कर डालेंगे।
वैताढ्य आदि शाश्वत पर्वतों के अलावा अन्य पर्वत, गिरि, डूंगर - पथरीले टीले, धूल रहित पथरीली भूमि-पठार- इन सबको नष्ट - मृष्ट कर डालेंगे। गंगा तथा सिंधु महानदी के सिवाय जलस्रोत, निर्झर, विषमगर्त, उबड़-खाबड़ खड्डे, ऊँचे-नीचे स्थान इन सभी को एक समान कर देंगे।
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हे भगवन्! उस काल में भरतक्षेत्र की भूमि का स्वरूप कैसा होगा ?
गौतम! उस काल में भूमि अंगार समूहमय मुर्मुरभूत - तुषाग्नि के सदृश विरल अग्निकणयुक्त, छारियभूया - भस्मरूप या राखमय, तपे हुए कड़ाहे के तुल्य एक सदृश तप्त ज्वालामय होगी। उसमें धूलि, रेणु, बालु, पंक-कर्दम, पतला कीचड़, घोर कीचड़ - दलदल का बाहुल्य होगा । बहुत से प्राणियों का पृथ्वी पर चलना कठिन होगा ।
हे भगवन् ! उस समय में भरतक्षेत्र में मानवों का आकार-प्रकार किस प्रकार का होगा ?
हे गौतम! उस समय मनुष्य कुरूप, दूषित वर्ण युक्त, दुर्गंधयुक्त एवं दूषित स्पर्श युक्त, अप्रिय, कांतिवर्जित, अनिष्ट, अशुभ, अमनोज्ञ, अमनोगम्य- अरुचिकर लगने वाले होंगे। उनका स्वर हीन, दीन, अनिष्ट, अकांत, अप्रिय, अमनोज्ञ एवं अमनोगम्य होगा। उनका वचन अनादेय
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