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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
वन्दना, स्तुति, पूजा आदि करते या उन्हीं हड्डियों के स्थापना तीर्थंकर (स्थापनाचार्य की तरह) बना कर रखते जबकि किसी भी साधु या साध्वी या श्रावक श्राविका ने अस्थि पूजा में धर्म नहीं माना, न गणधरों ने ही धर्म मानने का आदेश किया, तो ये मूर्ति भक्त महानुभाव हड्डी पूजा में धर्म बताकर क्यों भ्रम फैलाते हैं? आश्चर्य नहीं कि ऐसे ही प्रचार से जैन गृहस्थों में भी मरे हुए की हड्डियें तीर्थ के जलाशय में डालने का रिवाज चला हो? जबकि गृहस्थ अपने मातापिता की हड्डियों को सम्हाल कर अच्छे भाजन में रखे और उन्हें कालान्तर में गङ्गा आदि नदी में डाल कर अपने कर्त्तव्य का पालन होना समझे, उन्हें तो हम मिथ्या क्रिया करने वाले कहें और हम खुद हड्डियों की पूजा में धर्म होना माने यह कहाँ का न्याय है?
वास्तव मे इन्द्रादि देव जीताचार और प्रभु के प्रति अनन्य राग से ही क्रियाएं करते हैं किन्तु आत्म-कल्याण रूप धर्म के निमित्त नहीं। दाढा पूजनादि से मूर्तिपूजा का कोई सम्बन्ध नहीं है क्योंकि अस्थि पूजा जैन समाज को मान्य नहीं है। देवताओं द्वारा दाढा पूजनादि क्रिया लौकिक (सांसारिक) व्यवहार की है, लोकोत्तर (आत्म-कल्याण की) नहीं।
शंका - प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि ऋषभदेव भगवान्, गणधर एवं साधुओं की जहाँ चिता जलाई वहा शक्रेन्द्र ने स्तूप बनाए तो फिर मूर्तिपूजा में क्या बाधा है?
समाधान - शक्रेन्द्र अव्रती होते हैं और अव्रती की क्रिया धर्म नहीं होती। शक्रेन्द्र को भगवान् के वियोग में मोह और राग के कारण, आँसू बहाना, शौक करना आदि भी बताया हैं। अतः शक्रेन्द्र ने भगवान् का मोह रूप स्मृति चिह्न अर्थात् स्तूप का निर्माण करवाया। परन्तु वहाँ पर भी भगवान् ऋषभ देव की मूर्ति का कोई संकेत नहीं है तथा उस स्तूप को स्वयं इन्द्र या किसी भी देव ने नमस्कार नहीं किया और कोई भी साधु या,श्रावक उस स्तूप के दर्शन, पूजा आदि करने नहीं गया। अगर मूर्ति पूजा ही धर्म का प्रमुख अंग होता तो इन्द्र ने विशाल मन्दिर बनवाकर ऋषभदेव की मूर्ति बिठाकर, प्रतिष्ठा क्यों नहीं करवाई? केवल स्तूप बनाकर ही क्यों चला गया? पीछे से भगवान् के श्रावकों ने भी वहाँ पर मूर्ति या मंदिर क्यों नहीं बनवाया? इन्द्र द्वारा निर्मित स्तूप केवल स्मृति रूप ही होने से उसका धर्म से कोई संबंध नहीं है।
शंका - कुछ इतिहासकार भगवान् ऋषभदेव आदि की चिताओं पर भरत चक्रवर्ती द्वारा मंदिर निर्माण कर मूर्ति पूजा का उल्लेख करते हैं, सो क्या उचित है? .
समाधान - अर्वाचीन काल में कुछ कल्पित इतिहासकारों ने भगवान् ऋषभदेव आदि की
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