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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
की चिता में यावत् अनगारों की चिता में वैक्रिय लब्धि द्वारा अग्नि उत्पन्न करो। ऐसा कर मुझे ज्ञापित करो कि मेरे आदेश के अनुसार कार्य हो गया है। इस पर उदास, खेद युक्त, अश्रुपूरित नेत्रों से अग्निकुमार देवों ने तीर्थंकर ऋषभ की यावत् अनगारों की चिता में अग्नि उत्पन्न की फिर देवराज शक्र ने वायुकुमार देवों को बुलाया और आदेश दिया कि तीर्थंकर ऋषभ की अनगारों की चिता में वायुकाय की विकुर्वणा करो - वायु प्रवाह करो, अग्नि को प्रज्वलित करो । तीर्थंकर के, गणधरों के तथा अनगारों के शरीर को अग्नि युक्त करो । खिन्नमन, शोकान्वित एवं अश्रुपूरित वायुकुमार देवों ने तीर्थंकर की चिता में यावत् वायु प्रवाहित किया, अग्नि प्रज्वलित की, तीर्थंकर के शरीर को यावत् अनगारों के शरीर को ध्मामित किया - सुलगाया ।
पुनःश्च, देवराज शक्र ने बहुत से भवनपति एवं वैमानिक आदि देवों को आदेश दिया देवानुप्रियो! तीर्थंकर यावत् अनगारों की चिता में, प्रचुर प्रमाण में अगर, लोबान तथा अनेक घृत के घड़े तथा मधु डालो। तब उन भवनपति आदि देवों ने यावत् तीर्थंकर की चिता में यावत् सभी पदार्थ प्रचुर प्रमाण में डाले। देवराज शक्र ने मेघकुमार देवों को बुलाया और उनसे कहा. - देवानुप्रियो ! तीर्थंकर यावत् अनगारों की चिताओं को क्षीरोदक से बुझाओ। तब उन मेघकुमार देवों ने तीर्थंकर चिता को यावत् बुझाया।
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तब देवराज शक्र ने भगवान् तीर्थंकर की ऊपरी दाहिनी दाढ़ की अस्थि ली। देवराज ईशानेन्द्र ने ऊपर की बायीं दाढ़ की अस्थि ली। असुरपति चमरेन्द्र ने नीचे की दाहिनी दाढ़ की अस्थि ली। वैरोचनराज बली ने बायीं दाढ़ की नीचे की अस्थि ली। उनके अतिरिक्त भवनपति, वैमानिक आदि देवों ने यथायोग्य अस्थियाँ ग्रहण कीं । कइयों ने जिनेन्द्र भगवान् को भक्ति से, कइयों ने प्राचीन व्यवहार के अनुसार तथा कतिपय ने उसे अपना धर्म मानकर ऐसा किया ।
तब देवेन्द्र, देवराज शक्र ने भवनपति तथा वैमानिक आदि देवों को इस प्रकार कहा देवानुप्रियो ! सर्व रत्नमय, विशाल तीन स्तूपों की रचना करो। एक भगवान् ऋषभ के चिता स्थान पर, एक गणधरों के चिता स्थान पर तथा एक अनगारों के चिता स्थान पर। तब उन बहुत से यावत् देवों ने वैसा ही किया ।
तत्पश्चात् उन बहुत से भवनपति यावत् वैमानिक देवों ने भगवान् तीर्थंकर का परिनिर्वाण महोत्सव आयोजित किया। वैसा कर वे नंदीश्वर द्वीप में आ गए। देवराज शक्र ने पूर्व दिशा स्थित अंजनक पर्वत पर आठ दिनों का परिनिर्वाण महोत्सव किया। देवराज, देवेन्द्र के चार लोकपालों ने चारों दधिमुख पर्वतों पर अष्ट दिवसीय परिनिर्वाण महोत्सव मनाए ।
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