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နှင့်
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र **-*-*-*--*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*--*--*-*-*-10-16--08-10-19-12--12-28-08-08-18--2----- पर्यंकासन में स्थित, चंद्रमा से युक्त अभिजित मुहूर्त में, जब सुषम-दुषमा आरक में नवासी पक्ष-तीन वर्ष साढे आठ मास अवशिष्ट थे, वे जन्म, जरा एवं मृत्यु के बंधन का नाश कर, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अंतकृत, परिनिर्वृत्त तथा समस्त दुःख विरहित हुए।
(४१) जं समयं च णं उसभे अरहा कोसलिए कालगए वीइक्कंते समुज्जाए छिण्णजाइजरामरणबंधणे सिद्धे बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे तं समयं च णं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो आसणे चलिए। ___तए णं से सक्के देविंदे देवराया आसणं चलियं पासइ पासित्ता ओहिं पउंजइ २ त्ता भयवं तित्थयरं ओहिणा आभोएइ २ ता एवं वयासी परिणिव्वुए खलु जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे उसहे अरहा कोसलिए, तं जीयमेयं तीयपच्चुप्पण्णमणागयाणं सक्काणं देविंदाणं देवराईणं तित्थगराणं परिणिव्वाणमहिमं करेत्तए, तं गच्छामि णं अहंपि भगवओ तित्थगरस्स परिणिव्वाणमहिमं करेमि तिकट्ट वंदइ णमंसइ वं० २ त्ता चउरासीईए सामाणियसाहस्सीहिं तायत्तीसाए तायत्तीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं जाव चउहिं चउरासीईहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहि अण्णेहि य बहूहिं सोहम्मकप्पवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिं देवीहि य सद्धिं संपरिवुडे ताए उक्किट्ठाए जाव तिरियम-संखेजाणं दीवसमुद्दाणं मझमझेणं जेणेव अट्ठावयपव्वए जेणेव भगवओ तित्थगरस्स सरीरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विमणे णिराणंदे अंसुपुण्णणयणे तित्थयर सरीरयं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ २ त्ता पच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे जाव पजुवासइ।
शब्दार्थ - जीयमेयं - जीताचार-पारंपरिक व्यवहार, तीय - अतीत, पच्चुपण्ण - वर्तमान काल, अणागया - अनागत - भविष्यत्, विमणे - अन्य मनस्क। ..
भावार्थ - जब कौशलदेशीय अरहंत ऋषभ कालगत हुए, जन्म, वार्धक्य तथा मरण के बंधनों को तोड़कर सिद्ध, बुद्ध यावत् सर्व दुःख विनिर्मुक्त हुए, उस समय देवेन्द्र देवराज शक्र का आसन चलायमान हुआ।
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