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द्वितीय वक्षस्कार - परिनिर्वाण पर देवकृत महोत्सव
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परिनिर्वाण पर देवकृत महोत्सव
(४०) उसभे णं अरहा कोसलिए वज्ज-रिसह-णाराय-संघयणे समचउरंस-संठाणसंठिए, पंचधणुसयाई उई उच्चत्तेणं होत्था। _उसभे णं अरहा वीसं पुव्वसयसहस्साइं कुमारवासमझे वसित्ता, तेवटिं पुव्वसयसहस्साई महारज्जवासमझे वसित्ता, तेसीइं पुव्वसयसहस्साई अगारवासमज्झे वसित्ता, मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए। उसभे णं अरहा एगं वाससहस्सं छउमत्थपरियायं पाउणित्ता, एगं पुत्वसयसहस्सं वाससहस्सूणं केवलिपरियायं पाउणित्ता, एगं पुव्वसयसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरियायं पाउणित्ता, चउरासीई पुव्वसयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं दसहिं अणगारसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे अट्ठावय-सेलसिहरंसि चोद्दसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलियंकणिसण्णे पुव्वण्हकालसमयंसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमदूसमाए समाए एगूणणवउईहिं पक्खेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कंते जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। ___भावार्थ - कौशलिक अर्हत् ऋषभ वज्रऋषभ नाराचसंहनन एवं समचतुरस्र संस्थान संस्थित, पाँच सौ धनुष ऊँची देह से युक्त थे।
वे बीस लाख पूर्व पर्यन्त कुमारावस्था में एवं तिरेसठ लाख पूर्व महाराजावस्था में अवस्थित रहे। यों वे कुल तिरासी लाख पूर्व पर्यन्त गार्हस्थ्य में रहे। तदनंतर वे मुंडित होकर गृहवास से अनगार धर्म में दीक्षित हुए। वे एक सहस्र वर्ष पर्यन्त असर्वज्ञावस्था में रहे। वे एक लाख पूर्व से एक हजार वर्ष कम तक सर्वज्ञावस्था में रहे। इस तरह उन्होंने कुल एक लाख पूर्व तक श्रमण पर्याय का पालन कर चौरासी लाख पूर्व का परिपूर्ण आयुष्य भोगकर हेमन्त ऋतु के तीसरे मास के पाँचवें पक्ष में-माघ मास के कृष्ण पक्ष में, त्रयोदशी के दिन दस सहस्र श्रमणों से परिवृत्त अष्टापद पर्वत के शिखर पर छह दिवसीय निर्जल उपवास में पूर्वार्द्धकाल-प्रथम प्रहर में,
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