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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
पचास वादी तथा गतिकल्याणक–देवगति में दिव्य सातोदय रूप कल्याण युक्त, स्थितिकल्याणकदेवायु रूप स्थितिगत सुख स्वामित्वयुक्त आगामी भव में सिद्धत्व प्राप्त करने वाले, अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले बाईस हजार नौ सौ उत्कृष्ट मुनि संपदा थी। कौशलिक अर्हत् ऋषभ के बीस सहस्र श्रमणों तथा चालीस सहस्र श्रमणियों ने कुल साठ हजार अन्तेवासीअन्तेवासिनियों ने सिद्धत्व प्राप्त किया।
भगवान् ऋषभ के अनेक अंतेवासी अनगार थे। उनमें कतिपय एक मास पर्याय यावत् अनेक वर्ष दीक्षा पर्याय के थे। इनका विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र से ग्राह्य है। उनमें अनेक अनगार अपने दोनों घुटनों को ऊँचा उठाए, मस्तक को नीचा किए-यों एक विशेष आसन में अवस्थित हो, ध्यान रूप कोष्ठ में संलग्न थे, अपने आपको ध्यान में सर्वथा निरत किए हुए थे, इस प्रकार वे आत्मानुभावित होते हुए जीवनयात्रा में गतिशील थे।
भगवान् ऋषभ के समय में युगान्तकर एवं पर्यायान्तकर के रूप में दो प्रकार की भूमि थी। युगान्तर भूमि गुरु शिष्य क्रमानुबद्ध यावत् असंख्यात पुरुष परंपरा परिमित थी तथा पर्यायान्तकर भूमि अन्तर्मुहूर्त परिमित थी।
(३६) उसभे णं अरहा पंचउत्तरासाढे अभीइछट्टे होत्था, तंजहा - उत्तरासाढाहिं चुए, चइत्ता गम्भं वक्कंते, उत्तरासाढाहिं जाए, उत्तरासाढाहिं रायाभिसेयं पत्ते, उत्तरासाढाहिं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, उत्तरासाढाहिं अणंते जाव समुप्पण्णे, अभीइणा परिणिव्वुए।
_ भावार्थ - भगवान् ऋषभ की जीवन विषयक घटनाओं में से पाँच उत्तराषाढा नक्षत्र से तथा एक अभिजित नक्षत्र से संबद्ध है। ____ चंद्रमा के संयोग से युक्त उत्तराषाढा नक्षत्र में उनका सर्वार्थ सिद्ध नामक महाविमान से निर्गमन हुआ। वहाँ से निर्गत होकर वे माता मरूदेवी की कुक्षि में आए। उसी में - चंद्रमा से संयुक्त उत्तराषाढा नक्षत्र में ही उनका जन्म हुआ, उसी में उनका राज्याभिषेक हुआ, इसी में मुंडित होकर, गृहत्याग कर अनगार बने। उसी में उन्हें अनंत यावत् केवलज्ञान समुत्पन्न हुआ। चन्द्रयुक्त अभिजित मुहूर्त में उनका परिनिर्वाण हुआ।
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