SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४. ‘अन्तकृतदशा सूत्र 种种种种种种种种种种种种种种种种种本中中中中中中來來來來來來來來來來來來來來來 कोई आता-जाता तो नहीं है)। चारों ओर देख कर उसने पास के तालाब से गीली मिट्टी ली और गजसुकुमाल अनगार के पास आया। उसने गजसुकुमाल अनगार के सिर पर मिट्टी की पाल बांधी। फिर वह जलती हुई एक चिता में से फूले हुए टेसू के समान खैर की लकड़ी के लाल अंगारों को एक फूटे हुए मिट्टी के बरतन के टुकड़े (ठीकरे) में भर कर लाया और धधकते हुए अंगारों को गजसुकुमाल अनगार के सिर पर रख दिया। इसके बाद 'मुझे कोई देख न ले' - इस भय से चारों ओर इधर-उधर देखता हुआ वह वहाँ से भागा और जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में चला गया। विवेचन - शंका - क्या सोमिल जिस दिशा से आया, पुनः उसी दिशा में गया? . समाधान - "जामेव दिसं पाउब्भूए" - अर्थात् जिस दिशा से प्रकट हुआ था, आया था यानी मार्ग से चल कर जहां गजसुकुमाल अनगार ध्यानस्थ खड़े थे उस दिशा में आया था तथा अंगारे डाल कर 'तामेव दिसं पडिगए' - उसी दिशा में वापस चला गया यानी मार्ग तक वापस पहुंच गया। कहने का आशय यह है कि मार्ग से गजसुकुमाल तक आया यह भाव तो 'जामेव दिसं पाउब्भूए' का है और गजसुकुमाल जी के पास से वापस मार्ग तक पहुंचा यह भाव 'तामेव दिसं पडिगए' का है। मार्ग पर पहुंच कर सोमिल चाहे जंगल में गया हो या द्वारिका में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। असह्यवेदना और मोक्ष गमन (३६) तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूया उज्जला जाव दुरहियासा। तएणं से गयसुकुमाले अणगारे सोमिलस्स माहणस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव अहियासेइ। तएणं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थज्झवसाणेणं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुव्वकरणं अणुप्पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे तओ पच्छा सिद्धे जावप्पहीणे। कठिन शब्दार्थ - सरीरयंसि - शरीर में, वेयणा - वेदना, पाउन्भूया - उत्पन्न हुई, उज्जला - उज्ज्वल - जलाने वाली, दुरहियासा - दुस्सह, अप्पदुस्समाणे - लेश मात्र भी द्वेष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy