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वर्ग ३ अध्ययन ८ - गजसुकुमाल अनगार के सिर पर अंगारे ७३ ******************** ********************************************* तत्काल मृत्यु को प्राप्त हो गया। कालान्तर में बच्चे का जीव सोमिल और विमाता का जीव गजसुकुमाल के रूप में उत्पन्न हुआ।
'तं वरं सरइ' - इस पूर्व भव के वैर को याद करके ही सोमिल को तीव्र क्रोध उत्पन्न हुआ और बदला चुकाने के लिये ध्यानस्थ मुनि के सिर पर मिट्टी की पाल बांध कर खैर के धधकते अंगारे रखे। .
कहा भी है - 'कहाण कम्माण ण मुक्ख अत्थि' अर्थात् कृत कर्मों को भोगे बिना मुक्ति नहीं होती। अतः कर्म बांधते समय विचार करना चाहिये। कर्मबंध से बचना चाहिये। गजसुकुमाल अनगार के सिर पर अंगारे
(३८) तं सेयं खलु मम गयसुकुमालस्स वेरणिज्जायणं करित्तए, एवं संपेहेइ, संपेहित्ता दिसापडिलेहणं करेइ, करित्ता सरसं मट्टियं गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव गयसुकुमाले अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए मट्टियाए पालिं बंधइ, बंधित्ता जलंतीओ चिययाओ फुल्लियकिंसुयसमाणे खयरंगारे कहल्लेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तओ खिप्पामेव अवक्कमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए।
कठिन शब्दार्थ - वेरणिज्जायणं करित्तए - वैर का बदला लेना चाहिये, दिसापडिलेहणंदिशा-प्रतिलेखन - चारों ओर देखा, कोई मुझे देख तो नहीं रहा है, सरसं - गीली, मट्टियं - मिट्टी, मत्थए - मस्तक पर, पालिं - पाल, बंधइ - बांधता है, जलंतीओ - जलती हुई, चिययाओ - चिता में से, फुल्लिय किंसुयसमाणे - फूले हुए टेसू के समान लाल लाल, खयरंगारे - खेर के अंगारों को, कहल्लेणं - मिट्टी के ठीकरे में, पक्खिवइ - रख दिये, भीए - भयभीत होकर, अवक्कमइ - पीछे की ओर हटता है। . .
भावार्थ - सोमिल ब्राह्मण इस प्रकार विचार करने लगा - “मुझे उचित है कि मैं अपने वैर का बदला लूँ।" इस प्रकार विचार कर उसने चारों दिशाओं में अच्छी तरह देखा (कि इधर
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