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अन्तकृतदशा सूत्र 来来来来来来来來来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来本來來來來來來來來來來來來来来来来来来来
· पडिणिवत्तित्ता महाकालस्स सुसाणस्स अदूरसामंतेणं वीइवयमाणे वीइवयमाणे संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि गयसुकुमालं अणगारं पासइ, पासित्ता तं वरं सरइ, सरित्ता आसुरुत्ते एवं वयासी - "एस णं भो! से गयसुकुमाले कुमारे अपत्थिय जाव परिवज्जिए। जे णं ममं धूयं सोमसिरीए भारियाए अत्तयं सोमं दारियं अदिट्ठदोसपइयं कालवत्तिणीं विप्पजहित्ता मुंडे जाव पव्वइए।" .. __कठिन शब्दार्थ - अदूरसामंतेणं - न अति दूर न अधिक निकट, वीइवयमाणे - चलते हुए, संझाकालसमयंसि - संध्याकाल के समय, पविरलमणुस्संसि - कोई विरला ही मनुष्य आवे ऐसे समय, वेरं - वैर का, सरइ - स्मरण किया, आसुरुत्ते - क्रोधित हो कर, अपत्थिय - अप्रार्थित, परिवजिए - परिवर्जित, अदिट्ठदोसपइयं - कोई भी. दोष नहीं देखा गया-निर्दोष, कालवत्तिणीं - युवावस्था को प्राप्त, भोगकाल - योग्य समय पर, विप्पजहित्ताछोड़ कर।
भावार्थ - संध्या समय, जब मनुष्यों का आवागमन नहीं था, घर लौटते हुए सोमिलः ने महाकाल श्मशान के पास कायोत्सर्ग कर के ध्यानस्थ खड़े हुए गजसुकुमाल अनगार को देखा। देखते ही उसके हृदय में पूर्वभव का वैर जाग्रत हुआ। वह इस प्रकार कहने लगा - "अरे! यह वही निर्लज्ज, श्री कान्ति आदि से परिवर्जित, अप्रार्थितप्रार्थक (मृत्यु चाहने वाला) गजसुकुमाल कुमार है। यह पुण्यहीन और दुर्लक्षण युक्त है। मेरी भार्या सोमश्री की अंगजात एवं मेरी निर्दोष पुत्री सोमा जो यौवनावस्था को प्राप्त है, उसे निष्कारण ही छोड़ कर साधु बन गया है।"
विवेचन - सोमिल का पूर्व भव का वैर जाग्रत हुआ। पूर्व भव का वैर इस प्रकार कहा जाता है - ... गजसुकुमाल का जीव पूर्वभव में एक राजा की रानी के रूप था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी सौतेली रानी के पुत्र होने से उसे बहुत द्वेष हो गया और चाहने लगी कि किसी भी तरह से उसका पुत्र मर जाय।
संयोग की बात है कि पुत्र के सिर में फोड़ा (गुमड़ा) हो गया और वह पीड़ा से छटपटाने लगा। विमाता ने कहा - मैं इस रोग का उपचार जानती हूं अभी ठीक कर देती हूं। इस पर रानी ने अपने पुत्र को विमाता को दे दिया। उसने उड़द की मोटी रोटी बना कर गर्म गर्म बच्चे के सिर पर बांध दी। बालक को भयंकर असह्य वेदना हुई। वेदना सहन न हो सकी और वह
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