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________________ ७१ वर्ग ३ अध्ययन ८ - सोमिल का क्रोध 林林林中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中中林林林中 कठिन शब्दार्थ - थंडिलं - स्थंडिल भूमि की, पडिलेहेइ - प्रतिलेखना की, उच्चारपासवणं भूमिं - उच्चार-प्रस्रवण योग्य भूमि की, ईसिंपन्भारगएणं कारणं - शरीर को थोड़ा-सा झुका कर, दो वि पाए - दोनों पैरों को, साहटु - सिकोड़ कर। भावार्थ - इस प्रकार भगवान् से आज्ञा प्राप्त कर उन्होंने भगवान् को वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार कर के वे सहस्राम्रवन उद्यान से निकल कर महाकाल श्मशान में पहुंचे। वहाँ जा कर उन्होंने कायोत्सर्ग करने के लिए प्रासुक भूमि तथा उच्चार-प्रस्रवण (गुरुनीत, लघुनीत) परिठवने योग्य भूमि की प्रतिलेखना की। तत्पश्चात् काया को कुछ नमा कर चार अंगुल के अन्तर से दोनों पैरों को सिकोड़ कर एक पुद्गल पर दृष्टि रखते हुए, एक रात्रि की महाप्रतिमा स्वीकार कर ध्यानस्थ खड़े रहे। सोमिल का क्रोध (३७) . इमं च णं सोमिले माहणे सामिधेयस्स अट्टाए बारवईओ णयरीओ बहिया पुव्वणिग्गए समिहाओ य दन्भे य कुसे य पत्तामोडयं च गिण्हइ, गिण्हित्ता तओ पडिणिवत्तइ। कठिन शब्दार्थ- सामिधेयस्स अट्ठाए - समिधा (यज्ञ की लकड़ी) के लिये, पुव्वणिग्गएपूर्व ही निकला, समिहाओ - समिधा, दब्भे - दर्भ०, कुसे - कुश०, पत्तामोडयं - पत्रामोटक:-अग्रभाग में मुड़े हुए पत्तों को, पडिणिवत्तइ - लौटता है। भावार्थ - गजसुकुमाल अनगार के श्मशान-भूमि में जाने से पूर्व ही सोमिल ब्राह्मण हवन के निमित्त समिधा (काष्ठ) दर्भ-कुश आदि लाने के लिए द्वारिका नगरी से बाहर निकला था। वह सोमिल ब्राह्मण समिधा, कुश, डाभ और पत्र ले कर अपने घर आ रहा था। ०दर्भ - दूब नामक घास। .कुश - तीखे सिर वाली कुश नामक तृण वनस्पति। * पत्रामोटक - जमीन पर पड़े हुए पत्ते यज्ञ में काम नहीं आने की संभावना है। पत्ते तोड़ने का साधन ऊपर लगा हुआ और पत्ते ग्रहण करने का साधन नीचे लगा हुआ इस प्रकार का बर्तन पत्तों से भरा हुआ जिसे यहाँ पत्रामोटक कहा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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