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________________ ६६ अन्तकृतदशा सूत्र 著若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若若善若若若 गजसुकुमाल को वैराग्य .. (३४) तए णं से गयसुकुमाले कुमारे अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतियं धम्मं सोच्चा जं णवरं अम्मापियरं आपुच्छामि, जहा मेहे णवरं महिलिया वजं जाव वष्टियकुले। ___ कठिन शब्दार्थ - वद्वियकुले - वर्द्धितकुल - कुल की वृद्धि करके। भावार्थ - भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर कृष्ण-वासुदेव तो चले गए, किन्तु भगवान् की वाणी सुन कर गजसुकुमाल कुमार को वैराग्य उत्पन्न हो गया। उन्होंने हाथ जोड़ कर भगवान् से निवेदन किया - "हे भगवन्! मैं अपने माता-पिता से पूछ कर आपके पास दीक्षा ग्रहण करूँगा।" इस प्रकार मेघकुमार के समान भगवान् को निवेदन कर अपने घर आये और मातापिता के समक्ष अपना अभिप्राय प्रकट किया। माता-पिता ने दीक्षा की बात सुन कर उनसे कहा - "हे वत्स! तुम हमें बहुत इष्ट एवं प्रिय हो। हम तुम्हारा वियोग सहन करने में समर्थ नहीं है। अभी तुम्हारा विवाह भी नहीं हुआ है। इसलिए पहले तुम विवाह करो। कुल की वृद्धि करने के बाद (तुम्हारे पुत्रादि हो जाने पर तथा हमारा स्वर्गवास हो जाने पर) तुम दीक्षा ग्रहण करना।" इस प्रकार माता-पिता ने गजसुकुमाल कुमार से कहा। तए णं कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लढे समाणे जेणेव गयसुकुमाले कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गयसुकुमालं कुमारं आलिंगइ, आलिंगित्ता उच्छंगे णिवेसेइ, णिवेसित्ता एवं वयासी - तुमं णं ममं सहोयरे कणीयसे भाया तं मा णं तुमं देवाणुप्पिया! इयाणिं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतिए मुंडे जाव पव्वयाहि। अहण्णं तुमे बारवईए णयरीए महया-महया रायाभिसेएणं अभिसिंचिस्सामि। तए णं से गयसुकुमाले कुमारे कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे तुसिणीए संचिट्टइ। कठिन शब्दार्थ - आलिंगइ - आलिंगन किया, उच्छंगे - गोद में, णिवेसेड़ - बिठाया, महया - महान्, रायाभिसेएणं - राज्याभिषेक से, अभिसिंचिस्सामि - अभिषिक्त करूंगा, तुसिणीए संचिट्ठइ - मौन रहे। भावार्थ - जब गजसुकुमाल के वैराग्य की बात कृष्ण-वासुदेव ने सुनी, तो वे तुरन्त मनसुकुमाल के पास आये और उन्होंने स्नेहपूर्वक गजसुकुमाल को हृदय से लगाया तथा उसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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