________________
६४
अन्तकृतदशा सूत्र ********************* ******
**
***
**
*
*********
***********
छत्तेणं - छत्र पर कोरंट पुष्पों की माला, धरिज्जमाणेणं - धारण किये हुए, सेयवरचामराहिश्वेत एवं श्रेष्ठ चामरों से, उद्धव्वमाणीहिं - बिंजाते (वीज्यमान) हुए, णिगच्छमाणे - जाते हुए, जोव्वणेण - यौवन को, विम्हिए - विस्मित - आश्चर्यचकित।।
भावार्थ - उस काल उस समय में भगवान् अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी में पधारे। परिषद् धर्म-कथा सुनने के लिए गई। ___कृष्ण-वासुदेव ने भी भगवान् का आगमन सुन कर स्नान किया और वस्त्राभूषणों से अलंकृत हो कर अपने छोटे भाई गजसुकुमाल के साथ हाथी पर बैठे। कोरण्ट फूलों की माला से युक्त छत्र तथा बिंजाते हुए चामरों से सुशोभित कृष्ण-वासुदेव द्वारिका नगरी के मध्य होते हुए भगवान् अरिष्टनेमि की सेवा में जाने के लिए निकले। कृष्ण-वासुदेव ने राजमार्ग में खेलती हुई उस सोमा कन्या को देखा। उसके रूप, लावण्य और कान्ति युक्त यौवन को देख कर कृष्ण-वासुदेव को अत्यन्त आश्चर्य हुआ।
विवेचन - यद्यपि हरिनैगमेषी देव ने कृष्ण-वासुदेव को गजसुकुमाल जी की दीक्षा लेने की सूचना कर दी थी, तथापि धर्मप्रेमी श्रीकृष्ण ने प्रभु की पर्युपासना में जाते समय गजसुकुमाल जी को साथ लिया। "प्रभु की वाणी सुन कर कहीं यह वैराग्य-वासित नहीं हो जाय" यह भावना नहीं थी।
अशुभ नजर निवारण के लिए छत्र पर कोरंट (कनेर) के फूलों की माला रखी जाती थी, ऐसी श्रुति है।
सोमा कन्या की याचना
तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीगच्छह णं तुन्भे देवाणुप्पिया! सोमिलं माहणं जाइत्ता सोमं दारियं गिण्हह, गिण्हित्ता कण्णंतेउरंसि पक्खिवह, तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पक्खिवंति, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org