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वर्ग ३ अध्ययन ८ - देवकी को शुभ समाचार
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देवकी को शुभ समाचार
(२८) तए णं से हरिणेगमेसी देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-'होहिइ णं देवाणुप्पिया! तव देवलोयचुए सहोयरे कणीयसे भाउए। से णं उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुप्पत्ते अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतियं मुंडे जाव पव्वइस्सइ।' कण्हं वासुदेवं दोच्चं पि तच्वं पि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए।
· कठिन शब्दार्थ - देवलोयचुए - देवलोक से च्यव कर, उम्मुक्कबालभावे - बालभाव से मुक्त होकर, जोव्वणगमणुप्पत्ते - युवावस्था प्राप्त होने पर। __भावार्थ - इसके बाद उस हरिनैगमेषी देव ने कृष्ण-वासुदेव से इस प्रकार कहा -
"हे देवानुप्रिय! देवलोक का एक देव वहाँ की आयुष्य पूर्ण कर के तुम्हारा सहोदर लघुभ्राता हो कर जन्म लेगा और बाल्यावस्था बीत कर युवावस्था प्राप्त होते ही भगवान् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित हो कर दीक्षा लेगा।" हरिनैगमेषी देव ने कृष्ण-वासुदेव से दो-तीन बार इसी प्रकार कहा और जिस दिशा से आया था, उसी दिशा की ओर लौट गया।
विवेचन - विचक्षण श्रीकृष्ण ने यह तो माता के कहे वृत्तांत से जान लिया था कि अतिमुक्तक अनगार द्वार आठ संतान की बात कही गई है। उसकी सत्यता स्वयं भगवान् अरिष्टनेमि प्रमाणित कर चुके हैं। अतः माता को धीरज बंधा दिया।
शंका - श्रीकृष्ण ने देवाराधना क्यों की? क्या देव भाई दे सकता है?
समाधान - श्रीकृष्ण महाराज ने हरिनैगमेषी देव की आराधना भाई प्राप्ति के लिए नहीं की थी। देव भाई देने-नहीं देने में समर्थ नहीं होता तथा भाई तो होने की बात पक्की ही थी। हरिनैगमेषी देव की आराधना का कारण तो यह था कि आगे छहों बालकों का संहरण हरिनैगमेषी देव ने ही किया था। कहीं आठवीं अंतिम संतान का भी संहरण नहीं कर ले। अतः उसी से याचना कर ली जाय, इसलिए आराधना की थी।
शंका - क्या पौषध में देव को आह्वान करना उचित था? यदि यह धार्मिक पौषध नहीं था तो पौषध को पार कर देव का आदर-सत्कार क्यों किया?
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