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________________ ४८ अन्तकृतदशा सूत्र ******************************************************************* कठिन शब्दार्थ - णिगच्छसि - निकली, हव्वमागया - शीघ्रता से, अयं - यह, अढे - अर्थ - भाव, समटे - समर्थ - सत्य, हंता - हां, अत्थि - है। भावार्थ - भगवान् अरिष्टनेमि ने देवकी देवी से इस प्रकार कहा - “हे देवकी! आज इन छह अनगारों को देख कर तेरे मन में इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ कि 'मुझे पोलासपुर नगर में अतिमुक्तक अनगार ने इस प्रकार कहा था - 'हे देवकी! तू आकृति, वय और कान्ति आदि से एक समान, नलकूबर के सदृश सुन्दर ऐसे आठ पुत्रों को जन्म देगी कि वैसे पुत्रों को इस भरत क्षेत्र में दूसरी कोई माता जन्म नहीं देगी। परन्तु दूसरी माता ने भी अतिमुक्तक से कथित लक्षणों वाले पुत्रों को जन्म दिया है। अतिमुक्तक अनगार के वचन असत्य कैसे हुए?' इस शंका का समाधान भगवान् अरिष्टनेमि से प्राप्त करूँ, ऐसा मन में विचार कर के रथ पर . चढ़ कर मेरे समीप आई है क्यों देवकी! यह बात सत्य है?" . ... . .. . उत्तर में देवकी ने कहा - 'हाँ, भगवन्! आपका कथन सत्य है।' एवं खलु देवाणुप्पिया! तेणं कालेणं तेणं समएणं भहिलपुरे णयरे णागे. णामं गाहावई परिवसइ अड्डे। तस्स णं णागस्स गाहावइस्स सुलसा णामं भारिया होत्था। सा सुलसा गाहावइणी बालत्तणे चेव णिमित्तिएणं वागरिया एस णं दारिया णिंदू भविस्सइ। कठिन शब्दार्थ - णिमित्तिएणं - नैमित्तिक (भविष्यवक्ता) ने, दारिया - कन्या, णिंदूनिन्दू - मृतवन्ध्या - मृत बालकों को जन्म देने वाली। __ भावार्थ - भगवान् ने फरमाया - 'हे देवानुप्रिये! उस काल उस समय में भद्दिलपुर नामक . नगर था। वहाँ धन-धान्यादि से सम्पन्न नाग नामक गाथापति रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुलसा था। जब सुलसा गाथापत्नी बाल-अवस्था में थी, तब एक भविष्यवक्ता (नैमित्तक) ने उसके माता-पिता से कहा था कि 'यह कन्या मृतवन्ध्या होगी।' तए णं सा सुलसा बालप्पभिई चेव हरिणेगमेसिदेवभत्ता यावि होत्था। हरिणेगमेसिस्स पडिमं करेइ करित्ता कल्लाकल्लिं ण्हाया जाव पायच्छित्ता उल्लपडसाडिया महरिहं पुप्फच्चणं करेइ, करित्ता जाणुपायवडिया पणामं करेइ, करित्ता तओ पच्छा आहारेइ वा णीहारेइ वा। कठिन शब्दार्थ - बालप्पभिई - बाल्यकाल से ही, हरिणेगमेसिदेवभत्ता - हरिनैगमेषीदेव की भक्त, पडिमं - प्रतिमा, कल्लाकल्लिं - प्रातःकाल, पहाया - स्नान कर, पायच्छित्ता - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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