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वर्ग ३ अध्ययन ८ भगवान् अरिष्टनेमि का समाधान
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दुःस्वप्न निवारणार्थ प्रायश्चित्त कर, उल्लपडसाडिया भीगी साड़ी पहिने हुए, महरिहं - महान् पुरुषों के योग्य - बहुमूल्य, पुप्फच्चणं - पुष्पों से अर्चना, जाणुपायवडिया घुटनों को पृथ्वी पर टिका कर, पणामं प्रणाम, करेइ करती है, आहारेइ आहार करती, णिहारेड़ - नीहार करती ।
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भावार्थ - उसके बाद वह सुलसा बालिका अपने बाल्य काल से ही हरिनैगमेषी देव की भक्तिन बन गई। उसने हरिनैगमेषी देव की प्रतिमा बनाई और प्रतिदिन स्नान आदि कर के भीगी साड़ी पहने हुए ही वह उस प्रतिमा के सामने फूलों का ढेर करने लगी और अपने दोनों घुटनों को पृथ्वी पर टिका कर नमस्कार करने लगी । आहार- नीहार आदि कार्य वह इसके बाद करती थी ।
(२३)
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तए णं तीसे सुलसाए गाहावइणीए भत्तिबहुमाणसुस्साए हरिणेगमेसी देवे आराहिए यावि होत्था । तए णं से हरिणेगमेसी देवे सुलसाए गाहावइणीए अणुकंपणट्ठाए सुलसं गाहावइणीं तुमं च णं दोण्णि वि समउउयाओ करेइ तणं तुभे दोवि सममेव गब्भे गिण्हह, सममेव गब्भे परिवहह, सममेव दारए पयाह । तए णं सा सुलसा गाहावइणी विणिहायमावण्णे दारए पयाइइ ।
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कठिन शब्दार्थ भत्तिबहुम भक्ति बहुमान पूर्वक, सुस्सूसाए शुश्रूषा से, आराहिए - आराधित् - प्रसन्न, अणुकंपणट्ठाए - अनुकम्पा करने हेतु, दोण्णि - दोनों, समउउयाओ - समकाल में ऋतुमती (रजस्वला), सममेव साथ- साथ ही, गब्भे गिण्हह गर्भ धारण करती, गब्भे परिवहह - गर्भ का वहन करती, दारए बालक, पयायह देती, विणिहायमावण्णे - मरे हुए । भावार्थ सुलसा द्वारा भक्ति एवं बहुमानपूर्वक की गई शुश्रूषा से हरिनैगमेषी देव प्रसन्न हुआ। हरिनैगमेषी देव ने सुलसा गाथापत्नी की अनुकम्पा के लिए सुलसा को और तुम्हें एक ही समय में ऋतुमती (रजस्वला) किया। फिर तुम दोनों एक साथ गर्भ धारण करती, एक साथ गर्भ का पालन करती तथा एक साथ बालक को जन्म देती थी। सुलसा के बालक मरे हुए होते थे ।
तए णं से हरिणेगमेसि देवे सुलसाए अणुकंपणट्ठाए विणिहायमावण्णए दारए करयलसंपुडेणं गिण्हइ, गिण्हित्ता तव अंतियं साहरइ । तं समयं च णं तुमं पि णवण्हं मासाणं सुकुमाल दारए पसवसि । जे वि य णं देवाणुप्पिए! तव पुत्ता ते
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जन्म
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