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________________ वर्ग ३ अध्ययन ८ - भगवान् अरिष्टनेमि का समाधान ******************************************************************** ____ कठिन शब्दार्थ - पच्चक्खमेव - प्रत्यक्ष ही, दिस्सइ - दिखता है, पयायाओ - जन्म दिया है, एयारूवं - इस प्रकार के, वागरणं - कथन के विषय में, पुच्छिस्सामि - पूछू, संपेहेइ - विचार करती है, लहुकरणजाणप्पवरं - शीघ्रगामी बैलों से युक्त श्रेष्ठ रथ को, उवट्ठवेंति - उपस्थित करो, पज्जुवासइ - पर्युपासना करती है। ___भावार्थ - 'मैं आज यह प्रत्यक्ष देख रही हूँ कि इस भरत क्षेत्र में दूसरी माता ने ऐसे पुत्रों को जन्म दिया है। अतिमुक्तक मुनि के वचन असत्य नहीं होने चाहिए। इसलिए उचित है कि मैं भगवान् अरिष्टनेमि के पास जाऊँ और उन्हें वंदन-नमस्कार करूँ तथा उनसे पूछ कर अपने संदेह को दूर करूँ।' ऐसा विचार कर उसने अपने सेवकों को बुलाया और कहा कि - 'हे देवानुप्रियो! धार्मिक रथ तैयार कर मेरे पास लाओ।' देवकी रानी की यह आज्ञा सुनकर सेवकों ने तुरन्त धार्मिक रथ सजा कर उपस्थित किया। उसके बाद देवकी देवी, भगवान् महावीर स्वामी की माता देवानन्दा के समान रथारूढ़ हो कर भगवान् अरिष्टनेमि के समीप गई और भगवान् को वंदन-नमस्कार कर के पर्युपासना करने लगी। विवेचन - "जहा देवाणंदा जाव पजुवासई" - भगवती सूत्र शतक ६ उद्देशक ३३ में वर्णित देवानन्दा के भगवान् की सेवा में जाने, दर्शन करने एवं पर्युपासना करने के समान देवकी महारानी भगवान् अरिष्टनेमिनाथ की सेवा में गयी अर्थात् देवकी महारानी धार्मिक रथ में बैठ कर द्वारिका के मध्य बाजारों में होती हुई नन्दन वन में भगवान् के अतिशय को देख कर रथ से नीचे उतरी और पांच अभिगम करके समवशरण में जाकर भगवान् को विधिवत् वन्दन नमस्कार करके पर्युपासना (सेवा) करने लगी। भगवान् अरिष्टनेमि का समाधान (२२) तए णं अरहा अरिट्टणेमी देवइं देवीं एवं वयासी - ‘से गुणं तव देवई! इमे छ अणगारे पासित्ता अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था - एवं खलु पोलासपुरे णयरे अइमुत्तेणं तं चेव जाव णिगच्छसि, णिगच्छित्ता जेणेव ममं अंतियं हव्वमागया से जूणं देवई देवि! अयमढे समढे? 'हंता अत्थि।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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