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अन्तकृतदशा सूत्र ***cakkakeseketestskeletelectedkekse ekestrekeekakkekaceededetectedkekatreeticket
कठिन शब्दार्थ - एज्जमाणे - आते हुए, हट्टतुट्ट - हृष्टतुष्ट, चित्तमाणंदिया - चित्त में आनंदित हुई, पीईमणा - प्रीतिवश उसका मन, परमसोमणस्सिया - बहुत शांति और सौम्यता की अनुभूति हुई, हरिसवसविसप्पमाणहियया - हर्ष के वश विकसित हृदय वाली, आसणाओ - आसन से, अब्भुढेइ - उठती है, सत्तट्टपयाई - सात-आठ कदम, अणुगच्छइसामने जाती है, भत्तघरे - भोजनगृह, सीहकेसराणं - सिंह केसरी, मोयगाणं - मोदकों से, थालं - थाल को, भरेइ - भरती है, पडिलाभेइ - प्रतिलाभित किया, पडिविसज्जेइ - . विसर्जित किया।
भावार्थ - उस संघाड़े (दो मुनियों) को अपने यहाँ आते हुए देखकर देवकी महारानी अपने आसन से उठी और सात-आठ चरण उनके सामने गई। उन दोनों अनगारों के आकस्मिक आगमन से वह अत्यन्त हर्षित होती हुई बोली - 'मैं धन्य हूँ, जो मेरे घर अनगार पधारे' इस हेतु संतुष्ट-चित्त के कारण वह अत्यन्त आनन्दित हुई। मुनियों के पधारने से उसके अन्तःकरण में अपूर्व प्रेम उत्पन्न हुआ और मन अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसका हृदय हर्षातिरेक से उछलने लगा (अपूर्व आनन्दित हुआ)। विधिपूर्वक वंदन-नमस्कार कर के वह मुनियों को रसोई-घर में ले गई। फिर सिंहकेसरी मोदक का थाल भर कर लाई और उन अनगारों को प्रतिलाभित कर (बहरा कर) वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार कर के आदर सहित विनय पूर्वक उनको विसर्जित किया।
विवेचन - शंका - उच्च, नीच और मध्यम कुल की भिक्षा से क्या आशय समझना चाहिये?
समाधान - यहां जन्म या जाति की अपेक्षा से उच्च, नीच और मध्यम कुल का अभिप्राय न समझ कर आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध और निशीथ सूत्र के अनुसार राजा आदि के भवन, प्रतिष्ठा और सम्पदा की दृष्टि से उच्च कुल, श्रेष्ठियों के सप्तभौम - प्रासाद, दो तीन मंजिल की अपेक्षा मध्यम कुल और एक मंजिल वाले झोपड़ी में रहने वाले तथा परिवार . से छोटे कुल को नीच कुल समझना चाहिये।
दशवैकालिक सूत्र अध्ययन ५ उद्देशक २ गाथा ५ में कहा है - "णीयकुलमइकम्मं ऊसढं णाभिधारए"
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