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वर्ग ३ अध्ययन ८ - देवकी द्वारा प्रसन्नता पूर्वक भिक्षादान 来来来来来***************本來來來來來來來來來來來來來來來來*********************** सहस्संबवणाओ उजाणाओ पडिणिक्खमंति पडिणिक्खमित्ता तिहिं संघाडएहिं अतुरियं जाव अडंति।
भावार्थ - भगवान् की आज्ञा पा कर उन अनगारों ने भगवान् को वंदन-नमस्कार किया और सहस्राम्र वन उद्यान के बाहर निकले। दो-दो मुनियों के तीन संघाड़े बना कर शीघ्रता-रहित, चपलता-रहित और लाभालाभ की चिंता की संभ्रान्ति-रहित एवं उद्वेग-रहित वे भिक्षा के लिए द्वारिका नगरी में गये।
देवकी के घर में प्रवेश तत्थ णं एगे संघाडए बारवईए णयरीए उच्चणीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे अडमाणे वसुदेवस्स रण्णो देवईए देवीए गिहे अणुप्पवितु।
कठिन शब्दार्थ - उच्चणीयमज्झिमाई - ऊँच-नीच और मध्यम, कुलाई - कुलों में, घरसमुदाणस्स - गृहसामुदायिक - एक घर से दूसरे घर को, भिक्खायरियाए - भिक्षा के लिये, अडमाणे - घूमता हुआ, देवईए देवीए - देवकी देवी के; गिहे - घर में, अणुप्पविटेप्रविष्ट हुआ।
भावार्थ - उस तीन संघाड़ों में से एक संघाड़ा द्वारिका नगरी के ऊंच-नीच और मध्यमकुलों में गृह-सामुदायिक भिक्षा के लिए घूमता हुआ, राजा वसुदेव और रानी देवकी के प्रासाद में प्रविष्ट हुआ।
देवकी द्वारा प्रसन्नतापूर्वक भिक्षादान तए णं सा देवई देवी ते अणगारे एजमाणे पासइ, पासित्ता हुट्टतुट्ट चित्तमाणंदिया पीईमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता सत्तट्ठपयाइं अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहकेसराणं मोयगाणं थालं भरेइ, भरित्ता ते अणगारे पडिलाभेइ पडिलाभित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पडिविसज्जेइ।
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