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वर्ग ३ अध्ययन ८ - देवकी द्वारा प्रसन्नता पूर्वक भिक्षादान
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अर्थात् - साधु छोटे कुल को लांघ कर ऊंचे कुल अर्थात् भवन या प्रासाद में न जायें।
सत्तकृपयाई - सात या आठ कदम प्रायिक वचन हैं। गिन कर इतने कदम भरे हों, ऐसी कोई बात नहीं है। अर्थात् आदर देने के लिए उठ कर जितनी दूर सामने जा सकती थी, उतनी सामने गई।
सीहकेसराणं मोयगाणं - जिनमें चौरासी प्रकार की विशिष्ट पौष्टिक वस्तुएं मिला कर तैयार किया जाता है उन्हें सिंह केसरी (केसरा) मोदक (लड्डु) कहते हैं। वे कृष्ण वासुदेव के कलेवे के लिए तैयार किये गये थे।
सिंह केसरी (सिंह केसरा) मोदक सिंह के समान सब मोदकों में प्रधान होता है। श्रेष्ठ मेवे, शक्कर आदि मूल्यवान् सामग्री से निष्पन्न यह मोदक उत्तम संहनन वाले वासुदेव आदि ही पचा सकते हैं। केसरा का अर्थ गर्दन के बाल होता है, फीणी की भांति जिन मोदकों का निर्माण सिंह के बालों सरीखे पिण्ड जैसा दिखे अथवा सिंह के बालों जैसे वर्ण वाले मोदक इत्यादि वर्णन सिंह केसरा मोदक के लिए मिलता है। __ पडिलाभेइ - गुरु-भक्ति पूर्वक दान देना 'प्रतिलाभ' कहा गया है। तथारूप के श्रमणनिग्रंथों को प्रासुक एषणीय भोजन आदि बहरा कर देवकी श्रावक के बारहवें व्रत की स्पर्शना करती है। दान देने से पूर्व, दान देते समय तथा बहराने के बाद भी वह प्रसन्न होती है। देवकी देवी की यह अनुपम भक्ति आदर्श है।
देवकी देवी ने मुनियों को प्रतिलाभित करके पुनः वंदन नमस्कार किया, वंदन नमस्कार करके उन्हें विदाई दी। श्रावक का यह बारहवां व्रत है कि मुनि भगवंतों को प्रासुक एषणीय दान देकर महान् लाभ प्राप्त करे। दान देने के पूर्व, दान देते समय तथा दान देने के बाद दाता को कितनी प्रसन्नता होनी चाहिये, यह बात देवकी के इस प्रसंग से जानी जा सकती है।
(१६) तयाणंतरं च णं दोच्चे संघाडए बारवईए णयरीए उच्च जाव पडिविसजेइ।
भावार्थ - उसके थोड़ी देर बाद दूसरा संघाड़ा भी ऊंच-नीच-मध्यम कुलों में घूमता हुआ देवकी महारानी के घर आया। देवकी महारानी ने उसे भी उसी प्रकार सिंहकेसरी मोदकों से प्रतिलाभित कर विसर्जित किया।
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