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________________ वर्ग ३ अध्ययन ८ - बेले-बेले तप की अनुज्ञा ************************************************************jsjsjs चाहते हैं, तुब्भेहिं - आपकी, अब्भणुण्णाया समाणा अनुज्ञा प्राप्त होने पर, जावज्जीवाएजीवन पर्यन्त, छट्ठ छट्टेणं निरन्तर - बिना छोड़े लगातार, तवोकम्मेणं तप कर्म से, अप्पाणं अपनी आत्मा को, भावेमाणा भावित करते हुए, बेले- बेले, अणिक्खित्तेणं विहरित्तए - विचरण करें । भावार्थ - वे छहों अनगार जिस दिन दीक्षित हुए, उसी दिन उन्होंने भगवान् को वंदननमस्कार कर के इस प्रकार निवेदन किया- 'हे भगवन्! यदि आपकी आज्ञा हो, तो हमारी ऐसी इच्छा है कि हम यावज्जीवन निरंतर छट्ठ-छट्ठ (बेले- बेले) की तपश्चर्या से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करें ।' विवेचन उन छहों मुनिराजों ने जिस दिन मस्तक मुंडित करवा कर इन्द्रिय-मुण्डन और कषाय-मुण्डन किया तथा गृहस्थ अवस्था का त्याग कर मुनिपना स्वीकारा उसी दिन भगवान् से विनयपूर्वक यावज्जीवन बेले- बेले की तपस्या करने की आज्ञा चाही। क्योंकि जिनशासन में प्रत्येक कार्य का विधि-निषेध आज्ञा पर अवलंबित है। - - Jain Education International - - छठ्ठे छद्वेणं छट्ठ-छट्ट (बेले बेले की तपस्या) । छट्ट भत्त यह बेले की संज्ञा है किंतु . 'छह वक्त के भोजन का त्याग करना' - ऐसा अर्थ एकान्त नहीं है। बेले - बेले तप की अनुज्ञा - - - अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेह । तए णं ते छ अणगारा अरहया अरिट्ठणेमिणा अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठ छट्टेणं जाव विहरंति । कठिन शब्दार्थ - अहासुहं - जैसा सुख हो, देवाणुप्पिया - हे देवानुप्रिय ! मा पडिबंधं - प्रतिबंध प्रमाद - विलम्ब, करेह - करो । मत, ३७ ************ - - भावार्थ भगवान् ने कहा - 'हे देवानुप्रियो ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा करो । धर्म कार्य में विलम्ब मत करो।' इसके बाद वे छहों अनगार भगवान् की आज्ञा पा कर यावज्जीवन बेले- बेले की तपश्चर्या से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । विवेचन भगवान् अरिष्टनेमिनाथ ने छहों अनगारों की शारीरिक शक्ति रूप बल तथा मानसिक शक्ति रूप स्थाम देख कर फरमाया हे देवानुप्रियो ! जैसा तुम्हें सुख हो वैसा करो, धर्म कार्य में रुकावट मत करो । संयम व तप मुक्ति के हेतु हैं । मुक्ति के लिए संयम लिय For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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