SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ ********************* **************** भगवान् अरिष्टनेमि के अंतेवासी (शिष्य) थे। वे छहों समान आकार, समान रूप और समान वय वाले थे। उनके शरीर की कान्ति नीलकमल, भैंस के सींग के आन्तरिक भाग और गुली के रंग के समान तथा अलसी के फूल के समान नीले रंग वाली थी। उनका वक्षस्थल (छांती) 'श्रीवत्स' नामक चिह्न विशेष से अंकित था । उनके मस्तक के केश फूलों के समान कोमल और कुंडल के समान घुमे हुए - घुंघराले तथा अति सुन्दर लगते थे। सौन्दर्यादि गुणों से वे नलकूबर के समान थे। अन्तकृतदशा सूत्र विवेचन अंतेवासी - समीप रहने वाले शिष्य 'अंतेवासी' कहलाते हैं। आज्ञा पालन करने से क्षेत्र की अपेक्षा दूर होते हुए भी आज्ञा की अपेक्षा नजदीक होने से सभी अंतेवासी हैं। उपासकदशा सूत्र में तो महाशतक श्रावक को भी भगवान् ने 'मेरा अंतेवासी' फरमाया है। भायरो सहोयरा - छहों मुनिराज एक पिता की संतान होने से भाई थे, एक ही माता की संतान होने से सहोदर थे । भाई व सहोदर में अंतर इतना है कि भाई तो अनेक रिश्तों से हो सकते हैं पर सहोदर तो वें ही होते हैं जिनकी माता एक हो । - ************* ****** कुसुमकुंडल - भद्दलया - यद्यपि मुनि शरीर - संस्कार के पूर्ण त्यागी होते हैं तथापि उन छहों मुनियों के बाल काले, घुंघराले एवं कुसुम के समान कोमल थे, कानों पर आई केश - राशि कुण्डल का सा आभास कराती थी । लकूबर - समाणा - यद्यपि देवताओं के पुत्र नहीं होते तथापि नल- कूबर द्वारा विकुर्वित श्रेष्ठ रूपवान् बालक के समान वे छहों मुनि अतीव - अतीव रूप राशि के स्वामी थे । छहों अनगारों का संकल्प Jain Education International (१७) तणं ते छ अणगारा जं चेव दिवसं मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया तं चेव दिवसं अरहं अरिट्टणेमिं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामो णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणा जावज्जीवाए छट्ठ छट्ठेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणा विहरित्तए । कठिन शब्दार्थ - मुंडा - मुण्डित ( द्रव्य और भाव से मुण्डन किये हुए), भवित्ता होकर, अगाराओ अगार से, अणगारिय अनगार धर्म में, पव्वइया - प्रव्रजित, इच्छामो - - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy