________________
अहमं अज्झायणं - अष्टम अध्ययन
गजसुकुमाल
(१६)
जइ णं भंते! उक्खेवो अट्ठमस्स। एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए णयरीए जहा पढमे जाव अरहा अरिट्ठणेमी। सामी समोसढे।
भावार्थ - आठवें अध्ययन का भी प्रारम्भ वाक्य - ‘जइ णं भंते! उक्खेवो' इत्यादि है। इसका अभिप्राय भी पूर्वानुसार है। - जम्बू स्वामी के प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा स्वामी कहते हैं कि - हे जम्बू! उस काल उस समय में द्वारिका नाम की नगरी थी। भगवान् अरिष्टनेमि पधारे, इत्यादि वर्णन प्रथम वर्ग के समान है।
. छह अनगारों का परिचय . तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतेवासी छ अणगारा | . भायरो सहोयरा होत्था। सरिसया सरिसत्तया सरिसव्वया णिलुप्पल-गवलगुलिय
अयसिकुसुमप्पगासा सिरिवच्छंकिय-वच्छा कुसुमकुंडल-भद्दलया णलकूबर समाणा।
कठिन शब्दार्थ - छ अणगारा - छह अनगार, भायरो - भाई, सहोयरा - सहोदर, सरिसया - सरीखे दिखने वाले, सरिसत्तया - सरीखी त्वचा वाले, सरिसव्वया - अवस्था में समान दिखने वाले (यद्यपि ये जुड़वां नहीं थे पर सब सरीखी उम्र वाले हों ऐसा आभास होता था), णिलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासा - नीलकमल, भैंसे के सिंग के भीतरी भाग और अलसी के फूल के समान, सिरिवच्छंकियवच्छा - श्रीवत्स से अंकित वक्ष, कुसुम-कुंडल भद्दलया - कुसुम के समान कोमल एवं कुण्डल के समान धुंघराले बालों वाले, णलकूबर समाणा - नलकूबर (कूबर देवों के पुत्र) समान।
भावार्थ - उस काल उस समय में छह सहोदर भाई (एक माता के उदर से जन्मे हुए)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org