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________________ वर्ग १ अध्ययन १ - ज्ञानाराधना और तपाराधना १५ ******************************************************************* कठिन शब्दार्थ - जहा मेहे - मेघकुमार के समान, अणगारे जाए - अनगार जन्म, इरियासमिए - ईर्यासमिति से युक्त, णिग्गंथं पावयणं - निग्रंथ प्रवचन को, पुरओ काउं - आगे रख कर के। भावार्थ - इसके बाद गौतमकुमार के अनगार होने तक का वृत्तान्त ज्ञातासूत्र के प्रथम अध्ययन में वर्णित मेघकुमार के समान समझना चाहिये। जैसे मेघकुमार वैराग्य प्राप्त कर, माता-पिता के बहुत समझाने पर भी भोग-विलास की समस्त सामग्री को छोड़ कर अनगार बन गए. उसी प्रकार गौतमकमार भी अनगार बन गए। अनगार बनने के बाद ईर्या-समिति. भाषासमिति आदि से ले कर निर्ग्रन्थ-प्रवचन को आगे रख कर (भगवान् के कहे हुए प्रवचनों का पालन करते हुए) विचरने लगे। विवेचन - 'अणगारे जाए' - वैसे तो कोई भी न तो अपना जन्म देखता है और न मृत्यु देखता है पर संयम लेने वाला अपनी गृहस्थ अवस्था का मरण देखता है और संयमी के रूप में अपना जन्म देखता है। इसीलिये संसारावस्था का त्याग कर अनगार बनने को 'नया ‘जन्म' कहा गया है। ..'इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ' - जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति में उन्होंने निग्रंथ प्रवचन को आगे रख कर विहार किया अर्थात् निर्ग्रन्थ प्रवचन को सन्मुख रख कर भगवान् की आज्ञाओं का पालन करते हुए विचरने लगे। जैसे आंखों से देख कर सारे काम किए जाते हैं वैसे ही उन्होंने निग्रंथ प्रवचन (जिनवाणी) को अपनी आंखों के समान मान लिया था। ज्ञानाराधना और तपाराधना तएणं से गोयमे अणगारे अण्णया कयाइं अरहओ अरिट्ठणेमिस्स तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कठिन शब्दार्थ - तहारूवाणं - तथारूप, थेराणं - स्थविरों के, सामाइयमाइयाई - सामायिक आदि, एक्कारस अंगाई - ग्यारह अंगों का, अहिज्जइ - अध्ययन किया, बहूहि - बहुत से, चउत्थ - चतुर्थ भक्त - उपवास, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, भावेमाणे - भावित करते हुए। भावार्थ - उसके बाद बाद गौतम अनगार ने किसी समय में अहंत भगवान् अरिष्टनेमि के गीतार्थ स्थविर साधुओं के समीप सावधयोंग परिवर्जन निरवद्य योग सेवन रूप सामायिक आदि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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