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________________ १६ ********** ********* छह आवश्यक तथा ११ अंगों का अध्ययन किया । अध्ययन कर के बहुत-से चतुर्थभक्त (उपवास), षष्ठभक्त (बेला), अष्टभक्त (तेला), दशमभक्त (चोला), द्वादशभक्त (पचोला) अर्द्धमास और मासखमण आदि तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । . विवेचन - निर्ग्रथ प्रवचन को सर्वस्व समर्पण करने वाले उन गौतम अनगार ने भगवान् अरिष्टनेमि के यथार्थ संयमी तथारूप स्थविर भगवंतों के समीप सामायिक आदि ग्यारह अंगों का शास्त्राध्ययन किया। इतना ही नहीं स्वाध्याय के साथ साथ उपवास, बेला, तेला, चोला यावत् अठाई अर्द्धमासखमण, मासखमण आदि विविध तप साधना भी चलती रही । धर्मकथानुयोग में वर्णित जीवन चरित्रों में प्रत्येक साधक के दो महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर हमारा ध्यान जाना चाहिए - १. उन्होंने क्या अध्ययन किया? और २. उनकी तप साधना क्या रही ? उपरोक्त वर्णन से यह फलित है कि प्राचीनकाल में हमारा श्रमण- समाज ज्ञान-ध्यान एवं तपस्या में मग्न रहता था । शंका - आचारांग आदि ग्यारह अंग हैं फिर सामायिक आदि ग्यारह अंग कहने का क्या आशय है? अन्तकृतदशा सूत्र ******* समाधान आवश्यक सूत्र के छह आवश्यक (अध्ययन) हैं, उनमें पहला है सामायिक । यहां आवश्यक सूत्र को सामायिक कह कर आवश्यक सहित ग्यारह अंगों का अध्ययन करना बताया गया है। शंका समाधान 'चउत्थभत्त' शब्द का अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार लिखा है - “चउत्थं चउत्थेणं, त्ति चतुर्थभक्तं यावद् भक्तं त्यज्यते, यत्रं तच्चतुर्थम् इयं चोपवासस्य संज्ञा, एवं षष्ठादिकमुपवासद्वयादेरिति । " अर्थ - जिस तप में चार टंक का आहार छोड़ा जाय, उसे 'चउत्थभत्त' - चतुर्थ भक्त कहते हैं। यह 'चतुर्थ भक्त' शब्द का शब्दार्थ (व्युत्पत्त्यर्थ ) है किन्तु 'चतुर्थ भक्त' यह उपवास का नाम है। उपवास को चतुर्थ भक्त कहते हैं। अतः चार टंक का आहार छोड़ना यह अर्थ नहीं लेना चाहिए। इसी प्रकार षष्ठ भक्त, अष्ट भक्त आदि शब्द - बेला, तेला आदि की संज्ञा है । शब्दों का व्युत्पत्यर्थ व्यवहार में नहीं लिया जाता है, किन्तु रूढ़ (संज्ञा) अर्थ ही ग्रहण किया जाता है। उत्थभत्त शब्द भी उपवास, अर्थ में रूढ़ है अतः 'चार टंक आहार छोड़ना यह Jain Education International क्या चार वक्त (काल) आहार छोड़े वह चउत्थभत्त - चतुर्थभक्त है ? “चउत्थभत्तमिति उपवासस्य संज्ञा' चतुर्थ भक्त उपवास की संज्ञा है। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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