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________________ १४ अन्तकृतदशा सूत्र ********************************* ************ ** Pleafcate भगवान् अरिष्टनेमिनाथ का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठणेमी आइगरे जाव विहरइ। चउब्विहा देवा आगया। कण्हे वि णिग्गए। ___कठिन शब्दार्थ - अरहा - अर्हन्त, अरिट्ठणेमी - अरिष्टनेमि, आइगरे - आदिकर, चउव्विहा देवा - चार प्रकार के देव, आगया - आये, णिग्गए - निकले। भावार्थ - उस काल उस समय में अपने शासन की अपेक्षा से धर्म की आदि करने वाले, बाईसवें तीर्थंकर भगवान् अरिष्टनेमि, ग्रामानुग्राम विचरते हुए द्वारिका नगरी के बाहर नंदनवन नामक उद्यान में पधारे। वहाँ भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक ये चारों प्रकार के देव तथा मनुष्य और तिर्यंच, भगवान् की धर्म-कथा सुनने के लिए आये। कृष्ण वासुदेव भी अपने भवन से निकल कर भगवान् के समीप धर्म श्रवण करने के लिए पहुंचे। : जिनवाणी श्ववण और वैराग्य तएणं से गोयमे कुमारे जहा मेहे तहा णिग्गए। धम्म सोच्चा णिसम्म जं. णवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि, देवाणुप्पियाणं अंतिए पव्वयामि। कठिन शब्दार्थ - धम्मं - धर्म को, सोच्चा - सुन कर, णिसम्म - संतुष्ट हो कर, देवाणुप्पिया - हे देवानुप्रिय! अम्मापियरो - माता-पिता से, आपुच्छामि - पूछ कर, अंतिए - समीप, पव्वयामि - प्रव्रजित होना चाहता हूँ। ___ भावार्थ - ज्ञातासूत्र के प्रथम अध्ययन में वर्णित मेघकुमार के समान गौतमकुमार भी धर्मकथा सुनने के लिए आये। धर्म-कथा सुन कर और उसे हृदय में धारण कर के गौतमकुमार ने भगवान् से प्रार्थना की कि - 'हे भगवन्! मैं अपने माता-पिता से पूछ कर आपके पास दीक्षा लेना चाहता हूँ।' गौतमकुमार की दीक्षा एवं जहा मेहे जाव अणगारे जाए, इरियासमिए जाव इणमेव णिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ।. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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