________________
अन्तकृतदशा सूत्र 來称林************ ******Y林林林***中中中中中中中中中中中中中轉
थेरे जाव... में 'जाव' शब्द के अंतर्गत ज्ञातासूत्र के प्रथम अध्ययन का 'जाइसंपण्णे कुलसंपण्णे ... से लगा कर चोद्दसपुव्वी चउणाणोवगए' तक का पाठ ग्रहण हुआ है।
३. सुधर्मा स्वामी के लिए 'थेरे' (स्थविर) विशेषण का व्यवहार हुआ है। 'स्थविर' शब्द की व्याख्या प्रश्नोत्तर में इस प्रकार है -
प्रश्न - स्थविर किसे कहते हैं?
उत्तर - तप संयम में लगे हुए, साधुओं को परीषह-उपसर्ग आने पर यदि वे संयम-मार्ग से गिरते हों, शिथिल बनते हों, तो उन्हें जो संयम में स्थिर करे, उन मुनियों को स्थविर' कहते हैं। वे वयः, श्रुत और दीक्षा में बड़े होते हैं। इस अपेक्षा से स्थविर के ३ भेद हैं - १. वयःस्थविर २. श्रुतस्थविर और ३. दीक्षा स्थविर। ___ १. वयःस्थविर - जिस मुनि की वयः साठ वर्ष की हो, वे वयःस्थविर कहलाते हैं। इन्हें अवस्था-स्थविर भी कहते हैं।
२. नुत-स्थविर - जो ठाणांग सूत्र और समवायांग सूत्र के ज्ञाता हों, उन्हें श्रुत-स्थविर कहते हैं। उन्हें ज्ञान-स्थविर भी कहते हैं।
३. दीक्षा-स्थविर - जिनकी दीक्षा पर्याय २० वर्ष की हो - उन्हें दीक्षा स्थविर कहते हैं। उन्हें प्रव्रज्या-स्थविर या पर्याय-स्थविर भी कहते हैं।
जंबूस्वामी की जिज्ञासा तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्ज सुहम्मस्स अंतेवासी अज्ज जंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी - जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अयमढे पण्णत्ते। अट्ठमस्स णं भंते! अंगस्स अंतगडदसाणं समणेणं जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते? ___ कठिन शब्दार्थ - अंतेवासी - शिष्य, पज्जुवासमाणे - पर्युपासना करते हुए, आइगरेणंआदिकर - अपने शासन की अपेक्षा धर्म की आदि करने वाले, संपत्तेणं - संप्राप्त, सत्तमस्स अंगस्स - सातवें अंग का, उवासगदसाणं - उपासकदशांग, अयमढे - यह अर्थ (भाव), पण्णत्ते - फरमाया है, के - क्या।
भावार्थ - उस काल, उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी की सेवा में सदा समीप रहने वाले, काश्यप-गोत्रीय आर्य जम्बू स्वामी ने आर्य सुधर्मा स्वामी से इस प्रकार पूछा - हे भगवन्! (अपने शासन की अपेक्षा से) धर्म की आदि करने वाले, साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org