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वर्ग १ अध्ययन १ - सुधर्मा स्वामी का पदार्पण
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सुधर्मा स्वामी का पदार्पण
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(२)
न -सुहम्मे
तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्ज - थेरे जाव पंचहिं अणगार-सएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुण्णभद्दे तेणेव समोसरिए ।
परिसा णिग्गया जाव पडिगया।
कठिन शब्दार्थ - अज्ज - आर्य, सुहम्मे थेरे - स्थविर सुधर्मा, पंचहिं अणगार सहिं पांच सौ अनगारों के, सद्धिं - साथ में, संपरिवुडे - संपरिवृत्त - घिरे हुए, पुव्वाणुपुव्विं - पूर्वानुपूर्वी से, चरमाणे विचरते हुए, गामाणुगामं - ग्रामानुग्राम, दूइज्जमाणे - विहार करते हुए, समोसरिए - समवसृत हुए, परिसा परिषद्, णिग्गया- निकली, पडिगया - लौट गयी ।
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भावार्थ उस काल उस समय में स्थविर आर्य सुधर्मास्वामी पांच सौ अनगारों के साथ तीर्थंकर भगवान् की परम्परा के अनुसार विचरते हुए एवं अनुक्रम से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए चम्पानगरी के पूर्णभद्र नामक उद्यान में पधारे।
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आर्य सुधर्मा स्वामी के आगमन को सुनकर परिषद् उन्हें वंदना करने के लिए एवं धर्मकथा सुनने के लिए अपने-अपने घर से निकल कर वहाँ पहुँची और वंदन कर एवं धर्म कथा सुन कर लौट गई।
विवेचन - १. उत्तम आचारी, निरवद्यजीवी और निष्पाप जीवन वाले संतों के लिए 'आर्य' विशेषण का प्रयोग होता है। उत्तम कुल-शील वाले सद्गृहस्थों को भी 'आर्य' कहा जाता है। जाति-आर्य, कुल-आर्य के साथ-साथ सुधर्मा स्वामी ज्ञानार्य, दर्शनार्य और चारित्रार्य भी थे ।
२. सुधर्मा स्वामी का जन्म कोल्लाग सन्निवेश में वीरनिर्वाण के ८० वर्ष पूर्व हुआ । धम्मिल ब्राह्मण आपके पूज्य पिता थे और भद्दिला आपश्री की माता थी। मध्यमा पावा के महासेन उद्यान में गौतमस्वामी आदि के साथ ग्यारह गणधरों में आपकी भी दीक्षा हुई थी। आप ५० वर्ष की उम्र में दीक्षित हुए। वीरनिर्वाण के बाद बारह वर्ष छद्मस्थ रहे, आठ वर्ष केवली पर्याय का पालन कर १०० वर्ष की उम्र में सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हुए।
सुधर्मा स्वामी, भगवान् महावीर स्वामी के पट्टधर एवं पांचवें गणधर थे। आपके गुणों का विशेष वर्णन ज्ञाताधर्मकथांग आदि सूत्रों में उपलब्ध होता है।
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