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वर्ग १ अध्ययन १ - सुधर्मा स्वामी का समाधान ** **************************************************************** रूप चार तीर्थ की स्थापना करने वाले यावत् सिद्धि-गति को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने 'उपासकदशा' नामक ७ वें अंग में आनंद, कामदेव आदि दस उपासकों का वर्णन किया है। वह मैंने आपके मुखारविन्द से सुना है। अब कृपा कर यह बताइये कि 'अंतकृतदशा' नामक ८ वें अंग में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने किस विषय का प्रतिपादन किया है?
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में आर्य सुधर्मास्वामी के समक्ष आर्य जम्बूस्वामी ने आठवें अंग सूत्र अंतगडदशा के भाव सुनने की अपनी जिज्ञासा व्यक्त की है। ___ अंतगडदसा (अंतकृतदशा) शब्द का अर्थ टीकाकार श्री अभयदेव सूरी ने इस प्रकार किया है - 'अन्तो-भवान्तः, कृतो-विहितो यैस्तेऽन्त-कृतास्तद् वक्तव्यता प्रतिबद्धा दशाः। दशाध्ययनरूपा ग्रन्थपद्धतय इति अन्तकृतदशाः।'
अर्थ - जिन महापुरुषों ने भव का अन्त कर दिया है, वे 'अन्तकृत' कहलाते हैं। उन महापुरुषों का वर्णन जिन दशा अर्थात् अध्ययनों में किया हो, उन अध्ययनों से युक्त शास्त्र को 'अन्तकृतदशा' कहते हैं। इस सूत्र के प्रथम और अन्तिम वर्ग के दस-दस अध्ययन होने से इसको ‘दशा' कहा है।
कोई-कोई 'अन्तकृत' शब्द का ऐसा अर्थ करते हैं कि - 'जो महापुरुष अन्तिम श्वासोच्छ्वास में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये हैं, उन्हें अन्तकृत कहते हैं। किन्तु यह अर्थ शास्त्र सम्मत नहीं है। क्योंकि केवलज्ञान होते ही तेरहवाँ गुणस्थान गिना जाता है। १३ वें गुणस्थान का नाम 'सयोगी केवली गुणस्थान' है। इस गुणस्थान में योगों की प्रवृत्ति रहती है। इसके अन्त में योगों का निरोध कर १४ वें गुणस्थान में जाते हैं। इसलिए अंतिम श्वासोच्छ्वास में केवलज्ञान उत्पन्न होने की बात कहना ठीक नहीं है। केवलज्ञान होने के बाद १३ वें गुणस्थान में कुछ ठहर कर उसके बाद 'अयोगी-केवली' नामक १४ वाँ गुणस्थान प्राप्त होता है। अतः टीकाकार ने जो •अर्थ किया है, वही ठीक है। इस प्रकार भव (चतुर्गति रूप संसार) का अन्त करने वाली महान्
आत्माओं में से कुछ महान् आत्माओं के जीवन का वर्णन इस सूत्र में दिया गया है। इसलिए इसे 'अन्तकृतदशा सूत्र' कहते हैं।
सुधर्मा स्वामी का समाधान
.. एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पण्णत्ता।
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