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अन्तकृतदशा सूत्र ***************** ***
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तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी - “अम्हे. णं देवाणुप्पिया! समणा णिग्गंथा इरियासमिया जाव बंभयारी, उच्चणीय जाव अडामो।"
तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी - “एह णं भंते! तुन्भे जण्णं अहं तुन्भं भिक्खं दवावेमि" त्ति कटु भगवं गोयमं अंगुलिए गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। . .. कठिन शब्दार्थ - समणा - श्रमण, णिग्गंथा - निग्रंथ, इरियासमिया - ईर्या समिति के धारक, भिक्खं - भिक्षा; दवावेमि - दिलाता हूं, अंगुलिए - अंगुली, गिण्हइ - ग्रहण की।
भावार्थ - अतिमुक्तक कुमार का प्रश्न सुन कर गौतम स्वामी ने कहा - 'हे देवानुप्रिय! हम श्रमण-निर्ग्रन्थ हैं। हम ईर्या समिति आदि पाँच समितियों से युक्तं यावत् पूर्ण ब्रह्मचारी होते हैं तथा ऊंच, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा के लिए गोचरी करते हैं।' यह सुन कर अतिमुक्तक कुमार ने गौतम स्वामी से कहा - 'हे भगवन्! आप मेरे साथ पधारें। मैं आपको भिक्षा दिलाता हूँ।' ऐसा कह कर गौतम स्वामी की अंगुली पकड़ ली और उन्हें अपने घर ले गया। ___ विवेचन - गौतम स्वामी ने बाल-सुलभ जिज्ञासा की उपेक्षा नहीं की, बालक को प्रश्न का उत्तर दिया। बड़े वे ही होते हैं जो छोटों का अनादर नहीं करते। महानता का अंकन छोटों के प्रति किये जाने वाले व्यवहार से होता है। यदि बालक विवेकशील नहीं होता, तो गौतमस्वामी की बात सुनकर खेल में मग्न हो जाता, पर अतिमुक्तक अपने भोजन-गृह में साथ ले जाते हैं। 'ये बड़े हैं, कहीं आगे नहीं निकल जायें, मैं पीछे नहीं रह जाऊँ' - इस भावना से बालक ने अंगुली पकड़ ली तथा साथ में ले गये।
श्रीदेवी द्वारा आहार दान .. तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयमं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ट जाव आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया। भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ जाव पडिविसज्जेइ।
कठिन शब्दार्थ - एज्जमाणं - आते हुए को, आसणाओ - आसन से, अब्भुढेइ -
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