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वर्ग ६ अध्ययन १५ - भगवान की सेवा में जाने की इच्छा . १६३ *******************kkakkkkkkkkkkkkkkk******************************** उठती है, विउलेणं - विपुल (उत्तम), पडिलाभेड़ - प्रतिलाभित करती है, पडिविसज्जेइ - विसर्जित करती है।
भावार्थ - भगवान् गौतम स्वामी को आते देख कर रानी श्रीदेवी अत्यन्त प्रसन्न हुई। आसन से उठ कर वह सात-आठ चरण सामने गई और भगवान् गौतम स्वामी को तीन बार विधि सहित वंदन-नमस्कार किया। फिर उच्च भावों से आदर सहित अशन, पान, खादिम और स्वादिम - चारों ही प्रकार का आहार बहराया और उन्हें विसर्जित किया अर्थात् भवन-द्वार तक उन्हें पहुँचाने गई।
विवेचन - कोमल मन के बालक सिखाने से कम सिखते हैं, देख-देख कर सहज रूप से उनकी शिक्षा बराबर चलती रहती है। वे अपने आस-पास जो कुछ भी भला-बुरा देखते हैं, आत्मसात् करते जाते हैं। अतिमुक्तक कुमार का गौतम स्वामी की ओर खिंचाव एकदम आकस्मिक नहीं कहा जा सकता। माता श्रीदेवी की धर्म-प्रीति के बीज अतिमुक्तक की मनोभूमि पर बराबर पड़ते जाते थे। आज बालकों में धार्मिक संस्कार नहीं होने की शिकायत की जाती है, शिकायत तो यह होनी चाहिए कि माता-पिताओं में, बड़े-बुजुर्गों में धार्मिक संस्कार नहीं हैं। बालक अतिमुक्तक समझते थे कि मुझे माताजी को भिक्षा देने के लिए कहना पड़ेगा कि मैं इन्हें साथ लाया हूँ, पर जब माता. द्वारा वंदन-विधि देखी, तो विचक्षण प्रज्ञा वाले बालक को समझते देर नहीं लगी कि अवश्य ही ये महापुरुष मेरे पिताजी से भी अधिक पूज्य हैं। माता ने पिताजी को कभी इस प्रकार प्रणाम नहीं किया। पिताजी को भोजन कराने में माताजी की इतनी प्रसन्नता नहीं देखी गई। अतः गौतम स्वामी के प्रति बालक अतिमुक्तक की श्रद्धा बढ़ती ही रही।
भगवान् की सेवा में जाने की इच्छा तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी - “कहिणं भंते! तुब्भे परिवसह?" तए णं भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पिया! मम धम्मायरिए. धम्मोवएसए भगवं महावीरे आइगरे जाव संपाविउकामे, इहेव पोलासपुरस्स णयरस्स बहिया सिरिवणे उज्जाणे अहापडिग्गहं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तत्थ णं अम्हे परिवसामो।"
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