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________________ वर्ग ६ अध्ययन १५ - अतिमुक्तक - गौतम स्वामी संवाद. ****************** भावार्थ उसी समय अतिमुक्तक कुमार स्नान कर के अलंकारों से अलंकृत हुए और बहुत-से लड़के-लड़कियों, बालक-बालिकाओं और कुमार- कुमारिकाओं के साथ अपने घर से निकल कर इन्द्रस्थान (बालकों के खेलने के स्थान) पर आये और उन सभी के साथ खेलने लगे। अतिमुक्तक - गौतमस्वामी संवाद Jain Education International (७८) तए णं भगवं गोयमे पोलासपुरे णयरे उच्चणीय जाव अडमाणे इंदट्ठाणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयइ । तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीड़वयमाणं पासइ, पासित्तां जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए। भगवं गोयमं एवं वयासी - " के णं भंते! तुब्भे, किं वा अडह ?” कठिन शब्दार्थ - अदूरसामंतेणं - ज्यादा दूर नहीं उवा - पहुँचे । भावार्थ उसी समय भगवान् गौतम स्वामी, पोलासपुर नगर के ऊंच-नीच - मध्यम कुलों में गृहसामुदानिक भिक्षा के लिए भ्रमण करते हुए उस इन्द्रस्थान के समीप हो कर निकले । भगवान् गौतम स्वामी को आते हुए देख कर अतिमुक्तक कुमार उनके समीप गये और इस प्रकार बोले - 'हे भगवन्! आप कौन हैं और क्यों घूम रहे हैं ? ' विवेचन - टीकाकार श्री अभयदेव सूरि आदि पूर्वज महापुरुषों के मतानुसार बालक अतिमुक्तक की उम्र उस समय छह वर्ष लगभग थी तथा यही समय बालकों के साथ खेलने कूदने के उपर्युक्त वर्णन को पुष्ट करता है। अतिमुक्तक का ध्यान गौतम स्वामी की ओर आकृष्ट हुआ, यह एक उल्लेखनीय तथ्य है। बहुधा देखा जाता है कि बालक खेल में मस्त होकर भोजन करने के बुलावे की भी उपेक्षा कर बैठता है। खेल के सिवाय उन्हें कुछ भी नहीं सुहाता, फिर किस अदृश्य प्रेरणा से अतिमुक्तक लौह-कण के समान गौतम स्वामी रूप चुम्बक के पास खिचे आये। छोटे से बालक को क्या पता कि ये कौन हैं तथा कहाँ जा रहे हैं, पर बालक पूछ ही बैठा। रवीन्द्र बाबू का कथन है - "दिया शाम को जलाया जाता है, पर तेल पहले ही डाल दिया जाता है।' : 1 १६१ ****** - For Personal & Private Use Only समीप से, वीड़वयमाणं - जाते www.jainelibrary.org
SR No.004178
Book TitleAntkruddasha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages254
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_antkrutdasha
File Size48 MB
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