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विवेचन - गौतम स्वामी के सैकड़ों अंतेवासी शिष्य थे। वे प्रकृति के भद्र, विनीत एवं गुरु चरणों में निश्चल अर्पणा वाले थे। फिर भी गौतम स्वामी गोचरी के लिए क्यों पधारते थे ? क्या शिष्य आहार लाकर देने में तत्पर नहीं थे? अपना कार्य आप करने की वृत्ति वाले वे गौतमस्वामी स्वयं गोचरी पधारने में किसी प्रकार की हेठी नहीं समझते थे। श्री ज्ञाताधर्मकथा सूत्र के सोलहवें अध्ययन से यह जानने को मिलता है कि मासखमण का पारणा होने पर भी धर्मरुचि अनगार स्वयं पारणा लेने गए। इतना ही नहीं, कडुआ तुम्बा परठने के लिए भी स्वयं पधारे। उस जमाने में मुनियों की यह दशा थी और आज स्थिति यह है कि अधिकांश में पराधीनता एवं बड़प्पन की आंधी में धूल धूसर की गर्दिश इस कदर छा गई है कि आचार्यों के व्याख्यान स्थल पर पधारने के समय उनका आसन अन्य उठाते हैं, पाद प्रोंछन अन्य करते हैं, पाट पर बाजोट अन्य लगाते हैं, विहार में पात्र एवं उपकरण अन्य उठाते हैं। शिष्य तो विनय भाव से सब कुछ करेंगे ही, पर करवाने वालों को गौतम स्वामी एवं धर्मरुचि महाराज की ओर झांकना लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।
अतिमुक्तक इन्द्रस्थान में (७७)
इमं च णं अइमुत्ते कुमारे पहाए जाव विभूसिए बहूहिं दारएहि य दारियाहि य डिंभहि य डिंभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि य सद्धिं संपरिवुडे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इंदट्ठाणे तेणेव उवागए । तेहिं बहूहिं दारएहि य दारियाहि य डिंभएहि य डिंभियाहि य कुमारएहि य कुमारियाहि यसद्धिं संपरिवुडे अभिरममाणे अभिरममाणे विहरइ ।
अन्तकृतदशा सूत्र
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बहुत से, दार दारक -
कठिन शब्दार्थ - विभूसिए विभूषित होकर, बहुि सामान्य बालक (अच्छी आयु वाला), दारियाहि- दारिका सामान्य बालिका (अच्छी आयु वाली), डिंभएहि - डिंभक - छोटी आयु वाला ' बालक, डिंभियाहि - डिम्भिका - छोटी आयु वाली बालिका, कुमारएहि - कुमार (अविवाहित), कुमारियाहि - कुमारिका (अविवाहित लड़की), सद्धिं - साथ में, संपरिवुडे - संपरिवृत्त - घिरे हुए, इंदट्ठाणे - इन्द्रस्थान - बालकों का खेलने का स्थान, अभिरममाणे - खेलते हुए।
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