________________
पण्णरसमं अज्ायणं - पन्द्रहवां अध्ययन
अतिमुक्तक अनगार
उक्खेवओ पण्णरसमस्स अज्झयणस्स। एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरे णयरे, सिरीवणे उज्जाणे तत्थ णं पोलासपुरे णयरे विजए णामं राया होत्था। तस्स णं विजयस्स रण्णो सिरी णामं देवी होत्था, वण्णओ। तस्स णं विजयस्स रण्णो पुत्ते सिरीए देवीए अत्तए अइमुत्ते णामं कुमारे होत्था, सुकुमाले।
भावार्थ - जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से पूछा - 'हे भगवन्! चौदहवें अध्ययन का भाव मैंने आपसे सना। अब कपा कर पन्द्रहवें अध्ययन के भाव कहिए।' श्री सधर्मा स्वामी ने कहा - 'हे जम्बू! उस काल उस समय में पोलासपुर नामक नगर था। वहाँ श्रीवन नामक उद्यान था। विजय नाम का राजा था। उसकी रानी का नाम श्रीदेवी था। वह सर्वांगसुन्दर थी। विजय राजा का पुत्र तथा श्रीदेवी रानी का आत्मज ‘अतिमुक्तक' नामक कुमार था। वह अत्यन्त सुकुमार था।
- भगवान् का पदार्पण - तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव सिरीवणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई जहा पण्णत्तीए जाव पोलासपुरे णयरे उच्चणीय जाव अडइ॥
कठिन शब्दार्थ - जेट्टे - ज्येष्ठ, अंतेवासी - अंतेवासी (शिष्य), जहा पण्णत्तीए - व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार, अडइ - भ्रमण करने लगे। . भावार्थ - उस काल उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ग्रामानुग्राम विचरते हुए श्रीवन उद्यान में पधारे। भगवान् के ज्येष्ठ अंतेवासी इन्द्रभूति भगवान् को पूछ कर व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र के वर्णन के अनुसार पोलासपुर नगर में ऊँच-नीच-मध्यम कुलों में भिक्षा के लिए भ्रमण करने लगे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org