________________
१३४
अन्तकृतदशा सूत्र
तो केवली नहीं हूँ। अतः जब मैं उन्हें नहीं देख रहा हूं और गुणशील उद्यान जाकर मैं प्रभु को देखने की स्थिति में हूं तो क्यों न वहां जा कर वंदना नमस्कार करूं? रही बात जीवन और मरण की, सो ज्ञानियों ने अपने धवल विमल ज्ञान में जितना आयुष्य देखा है, उसे तो अन्यथा करने की शक्ति किसी में है ही नहीं। आप तो निर्भय हो कर अनुमति प्रदान कीजिये।'
बिना आज्ञा जाने में विनय धर्म का उल्लंघन होता है अतः आपकी आज्ञा होने पर ही मैं जाऊंगा। भगवान् को भावपूर्वक वंदना नमस्कार करूंगा। मन को एकाग्र करके, वचनों से संयत . रह कर, काया को साधकर मानसिक, वाचिक, कायिक त्रिविध पर्युपासना करूंगा।
माता-पिता की स्वीकृति . तए णं तं सुदंसणं सेटिं अम्मापियरो जाहे णो संचाएंति बहूहिं आघवणाहिं जावं परूवेत्तए। तए णं से अम्मापियरो ताहे अकामया चेव सुदंसणं सेटिं एवं वपासी - "अहासुहं देवाणुप्पिया!" तएणं से सुदंसणे सेटिं अम्मापिईहिं अन्भणुण्णाएं समाणे ण्हाए सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पायविहारचारेणं रायगिहं णंयरं मज्झं मझेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणस्स अदूरसामंतेणं जेणेव गुणसिलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ___ कठिन शब्दार्थ - अकामया - नहीं चाहते हुए, पायविहारचारेणं - पैदल चल कर ही, सुद्धप्पावेसाई - शुद्ध वस्त्र पहने।।
भावार्थ - सुदर्शन सेठ को उसके माता-पिता अनेक प्रकार की युक्तियों से भी नहीं समझा सके, तो उन्होंने अनिच्छा पूर्वक इस प्रकार कहा - 'हे पुत्र! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो वैसा करो।' माता-पिता से आज्ञा प्राप्त कर सुदर्शन सेठ ने स्नान किया और शुद्ध वस्त्र धारण किये। इसके बाद वे भगवान् के दर्शन करने के लिए अपने घर से निकले और पैदल ही राजगृह नगर के मध्य होते हुए मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन के न अति दूर न अति निकट हो कर गुणशीलक उद्यान में जाने लगे।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org