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अन्तकृतदशा सूत्र 來來來來來來來來來來來來來來來來来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来学 करित्ता महरिहं पुप्फच्चणियं करेइ, करित्ता जाणुपायवडिए पणामं करेइ। तए णं ते छ गोहिल्ला पुरिसा दवदवस्स कवाडंतरेहितो णिग्गच्छंति, णिग्गच्छित्ता अजुणयं मालागारं गिण्हंति, गिण्हित्ता अवओडय-बंधणं करेंति, करित्ता बंधुमईए मालागारीए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति।
कठिन शब्दार्थ - दवदवस्स - शीघ्रतापूर्वक, कवाडंतरेहितो - किवाड़ों की ओट से।
भावार्थ - अर्जुन माली अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ मुद्गरपाणि यक्ष के यक्षायतन में आया और भक्तिपूर्वक प्रफुल्लित नेत्रों से मुद्गरपाणि यक्ष की ओर देखा तथा प्रमाण किया। फिर फूल चढ़ा कर और दोनों घुटने टेक कर प्रणाम करने लगा। उसी समय उन छहों गोष्ठिक पुरुषों ने शीघ्र ही किवाड़ों के पीछे से निकल कर अर्जुन माली को पकड़ लिया और औंधी मुश्के बांध कर उसे एक ओर लुढ़का दिया और उसके सामने ही उसकी पत्नी बन्धुमती के साथ विविध प्रकार से भोग भोगने लगे।
अर्जुनमाली का चिंतन तए णं तस्स अजुणयस्स मालागारस्स अयमज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - ‘एवं खलु अहं बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवओ कल्लाकल्लिं जाव वित्तिं कप्पेमाणे विहरामि। तं जइ णं मोग्गरपाणिजक्खे इह सण्णिहिए होंति से णं किं ममं एयारूवं आवई पावेजमाणं पासते? तं णत्थि णं मोग्गरपाणिजक्खे इह सण्णिहिए सुव्वत्तं तं एस कट्टे।' ___ कठिन शब्दार्थ - सण्णिहिए - सन्निधि - यहां होते, आवई - आपत्ति में, पावेज्जमाणंपड़े हुए को, पासते - देखते रहते, सुव्वत्तं - सुव्यक्त - सुस्पष्ट, कट्टे - काष्ठ।
भावार्थ - यह देख कर अर्जुन माली के हृदय में यह विचार उत्पन्न हुआ - "मैं बाल्यकाल से ही अपने इष्टदेव मुद्गरपाणि यक्ष की प्रतिदिन पूजा करता आ रहा हूँ। पूजा करने के बाद ही आजीविका के लिए फूल बेच कर निर्वाह करता हूँ। यदि मुद्गरपाणि यक्ष यहाँ होता, तो क्या वह इस प्रकार की महा विपत्ति में पड़े हुए मुझे देख सकता था? इसलिए यह निश्चय होता है कि यहाँ मुद्गरपाणि यक्ष उपस्थित नहीं है। यह केवल काठ ही है।'
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